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Wednesday, July 11, 2007

चाणक्य वाणी: क्रोध अपनी शक्ति के अनुकूल ही व्यक्त करें

  1. समाज में लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए सबसे पहले दूसरों की निंदा में लगी हुये वाणी पर रोक लगाओ। परनिन्दा में रस लेना दुष्ट लोगों के प्रवृति है । वाणी पर संयम तपस्या है। निंदा न करके दूसरों की प्रशंसा करने वाला ही लोकप्रिय होता है ।
  2. विद्वान् व्यक्ति वही माना जाता है जो अपने व्यक्तित्व के अनुसार वार्तालाप करता है। वह वार्तालाप के प्रसंग के अनुसार ही बात करता है। अच्छी से अच्छी बात अप्रासंगिक होकर भी अप्रभावी हो जाते है। यदि कोई अप्रिय बात हो और उसमें क्रोध की अभिव्यक्ति आवश्यक हो तो भी वह उतना ही प्रदर्शित करना चाहिये जितना अपनी शक्ति के अनुकूल हो।

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