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Tuesday, July 10, 2007

चाणक्य वाणी, वेदों का महत्व

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  1. वैद के ज्ञान की गहराई को न समझकर उनकी निंदा करने वाले उनमें वर्णित सच्चाई और महानता को कम नहीं कर सकते। शास्त्र निहित आचार व्यवहार को व्यर्थ बताने वाले अल्पज्ञ लोग शास्त्रों के उपयोगिता को नष्ट नहीं कर सकते। शांत, सज्जन व्यक्ति को दुर्बल कहने वाले दुर्जनों का प्रयास भी निरर्थक हो जाता है। किसी की निंदा कराने वाले का अपना ही नाश होता है।
  2. कामवासना से रहित व्यक्ति रोग रहित नहीं रह सकता है, कामंधता भी अपने आप में एक रोग है। अधिक मोह भी मनुष्य को कमजोर बना देता है। ममता अच्छा गुण है पर मोह बुरा है। बुद्धि पूर्वक प्रेम करना अच्छा है, मोह तो अज्ञानता के कारण होता है। क्रोध की आग में क्रोधी व्यक्ति ही भस्म होता है। आत्मज्ञान से बढ़कर इस संसार में कोई दूसरा सुख नहीं। सत्य के ज्ञान से मनुष्य अज्ञानता द्वारा पैदा हुए कष्ट से बच सकता है।

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