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Tuesday, June 26, 2007

संत कबीर वाणी

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निन्दक दूर न कीजिये, कीजै आदर मान
निर्मल तन मन सब करे , बाकी आन्ही आन्
अपनी निंदा करना वाले को कभी अपने से दूर मत करो, सदैव उसका आदर करो। वह आपके जीवन, कर्म और आचरण के विषय में कुछ भी बकता रहेगा और आप सतर्कता बरतेंगे और इससे आपका तन और मन निर्मल बना रहेगा।
तिनका कबहूँ न निन्दिये, पाँव तले जो होय
कबहूँ उड़ी आंखों पडी, पीर घनेरी होय
इसका आशय यह है कि कभी भी किसी कि निंदा मत करो। अपने पाँव तले आये तिनके की भी नहीं। पता नहीं कब उड़कर आंखों में पड़ जाये तो फिर भारी पीडा देगा

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