भारतीय धर्म की आड़ में स्वर्णिम बाबा और अम्मा का रूप रचकर कमाया जा सकता
है। यही कमजोरी भी है और ताकत भी। देखने वाले का नजरिया है। हमारे अध्यात्मिक
दर्शन में सत्य और माया दोनों का आकर्षण पर अध्ययन किया गया है। सत्य
प्रारंभ में कठोर लगता है पर जब उसे जान लिया जाता है तो आनंद आता है। माया
से संपर्क रखने पर प्रांरभ में अच्छा लगता है पर बाद में पता लगता है कि हमने
स्वयं को धोखा दिया है। चुनने वाले अपने
हिसाब से फूल और कांटे चुनते हैं। ज्ञानी
केवल दृष्टा बनकर न केवल अपना बल्कि संसार का जीवन चक्र चलता देख आनंद उठाते हैं।
प्रातःकाल योग साधना के साथ ही भजन वगैरह कर पूरे दिन की यज्ञवेदी बनाओ न
कि आतंकवाद, अपराध तथा अधर्म के समाचार सुनकर
सपने की अर्थी सजाओ।
अगर सभी पोर्न साईट पर प्रतिबंध नहीं लग सकता तो कम से कम चेतावनी लिखने का
निर्देश तो दिया ही जा सकता है कि इसे देखना मनोरोग का कारण बन सकता है। इससे कथित
अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थक परबुद्धिजीवी भी प्रसन्न हो जायेंगे और नागरिकों
में चेतना लाने का काम भी स्वतः होगा। पोर्न साईट पर प्रतिबंध- हमारा एक विचार यह भी
है कि पहले भी समाज में यौन साहित्य धड़ल्ले से बिकता था। तब भी ऐसी मांग होती थी
पर किसी ने उस पर प्रतिबंध लगाया। अब
इंटरनेट पर भी इसी तरह की प्रवृत्ति दिख रही है तो यह समझना चाहिये कि मनुष्य समाज
में कुछ स्वाभाविक कमजोरियां हैं जिन्हें प्रतिबंध से दबाना न्यायासंगत नहीं भी हो
सकता। वैसे हमारी सलाह तो हमेशा यही रहती
है कि जहां तक हो सके यौन साहित्य, दृश्यांकन के साथ ही इस पर आपसी वार्तालाप में चर्चा अधिक करना ही दिमाग का
भट्टा बिठाना है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.comयह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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