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Thursday, August 13, 2015

डरपोक बनाने वाली फिल्मों के प्रति भी चेतना लाना जरूरी-हिन्दी लेख(DARPOK BANANE WALI FILM KE PRATI CHETNA LANA JAROORI-HINDI ARTICLE)


            हमारे देश में हिन्दी फिल्मों का बहुत प्रभाव रहा है। अब टीवी भी बहुत असर दिखा रहा है। ऐसे में जब  टीवी चैनल  अनेक बार भारतीय धर्मों पर प्रहार करते हैं  उनक अनुसार हमने मान लिया कि पाखंडी संत अंधविश्वास फैलाते हैं।  देश के अनेक जागरुक लोगों ने कथित रूप से समाज के अंधविश्वास के विरुद्ध अभियान छेड़कर बहुत  नाम भी कमाया है। इतना ही नहीं अनेक लोगों ने तो अंधविश्वास के विरुद्ध कानून बनवाकर वाह वाही लूटी और समाज सुधारक के रूप में अपना नाम इतिहास में दर्ज कराया।  हमें आपत्ति नही है पर सवाल यह है कि  जिस तरह हिन्दी फिल्में एक नायक से समाज के उद्धार करने की प्रवृत्ति पैदाकर कायरता फैलाती है उसे कौन रोकने के लिये कौन आगे आयेगा।  इन फिल्मों में एक नायक अस्वाभाविक रूप से तलवार, बंदूकें, फरसे तथा बमों से लैस खलनायक समूह का केवल हाथ से नाश करते हुए दिखाया जाता है। भीड़ केवल देखने के लिये खड़ी होती है।  किसी नायक को हथियार लेकर खलनायकों का नाश करते हुए इसलिये नहीं दिखाया जाता ताकि आम आदमी में कहीं शेर बनने की प्रवत्ति न आ जाये। दूसरी बात यह कि अगर कोई भीड़ में है तो वह नायक न  बने न उसकी सहायता करने की सोचे। ऐसा फिल्में दिखाने वाली समाज में कायरता और अकर्मण्यता का पाठ पढ़ाती हैं।
हम अक्सर सोचते हैं कभी कोई समाज सुधारक आगे आये  जो हिन्दी फिल्मों के ऐसी कहानियों पर रोक लगाने के लिये अभियान छेड़े। हम जैसे सामान्य लेखकों के पास  उच्च पद, अधिक पैसा तथा प्रायोजित प्रतिष्ठा नहीं होती कि समाज सेवा कर सकें। वैसे हमारा अनुमान है कि पद, प्रतिष्ठा तथा पैसा पान वाला कोई फिल्मों से फैलने वाली कायरता से समाज को बचाने का प्रयास भी नहीं कर सकता नहीं क्योंकि धनपतियों का कोई गिरोह उसे सहायता नहीं देगा।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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