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Saturday, March 21, 2015

इज्जत में ही रहता है बेइज्जती का भय-पतंजलि योग के आधार पर चिंत्तन लेख(izzat mein he rahta hain beizzati ka khatra-A Hindu hindi religion thought based on patanjali yog sahitya)



            मनुष्य में यह सामान्य प्रवृत्ति रहती है कि वह अपने परिवार, समाज तथा अन्य वर्ग से सम्मान पाना चाहता है। पूज्यता मिलने पर वह न केवल प्रसन्न होता है वरन् उसके मद में डूबकर विचित्र व्यवहार भी करने लगता है।  उसे देश, काल तथा भाग्य के परिवर्तित होने का आभास और अनुमान तक नहीं हो पाता।  कालांतर में जब उसे सम्मान नहीं मिलता तो वह मानसिक संताप का शिकार हो जाता है।  अगर हम योग सिद्धांतों को समझें तो जहां मान है वहीं अपमान, जहां विश्वास है वहीं घात  और जहां वचन है वहीं निराशा की आशंका रहती है।  श्रीमद्भागवत गीता में इसलिये ही सांसरिक विषयों के प्रति निष्काम भाव अपनाने का संदेश दिया है। निष्काम भाव से काम करने पर अनुकूल परिणाम न मिलने पर निराशा नहीं होती वरन् यह संतोष रहता है कि हमने अपना काम पूरे परिश्रम से किया।

पतंजलि योग में कहा गया है कि

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स्थान्युपनिमन्त्रणे सङ्स्मयाकरणे पुनरिष्टप्रसङ्गात्।

            हिन्दी में भावार्थ-संपन्न व्यक्ति से सम्मान मिलने पर प्रसन्न नहीं होना चाहिये क्योंकि उससे अपमानित होने का भय भी उपस्थित रहता है।

            योग साधना के समय आसन तथा प्राणायाम के दौरान साधक ऊपर-नीचे, दायें-बायें तथा सामने-पीछे की तरफ अंगों को घुमाने के साथ ही प्राण भी उसी क्रम में स्थापित करता है। इस तरह के अभ्यास करते करते उसके अंदर यह ज्ञान सहजता से आ जाता है कि किसी कर्म का प्रतिकर्म भी हो सकता है।  उसी तरह वह किसी के व्यवहार से निराश भी नहीं होता क्योंकि वह जानता है कि दुष्कर्म करने वाला  मनुष्य कभी  सद्कर्म की तरफ भी प्रेरित हो ही जाता है।  इस तरह का ज्ञान होने पर मनुष्य का जीवन सहज हो जाता है।  उसे सांसरिक विषयों की चिंता परेशान नहीं करती क्योंकि वह जानता है कि उसकी समस्यायें समय आने पर स्वतः ही दूर हो जायेंगी।

दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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