समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Sunday, May 19, 2013

अथर्ववेद से संदेश-देह और मन को शुद्ध रखने वाला मनुष्य पीड़ाओं से दूर रहता है (atharvaved se sandesh-shariri aur man ko shuddh rakhane wala peedaon se door rahataa hai

           इस संसार में प्रत्येक मनुष्य को संघर्ष करना ही पड़ता है।  इस  संघर्ष में जय पराजय का आधार मनुष्य के अंदर विद्यमान शारीरिक और मानसिक क्षमतायें होती हैं।  जिनका संकल्प दृढ़ होने के साथ हृदय  में कर्म करने से प्रतिबद्धता है वह व्यक्ति हमेशा ही सफल होता है।  यह बात कहने में अत्यंत सहज लगती है पर इसका व्यवहारिक पहलू यह है कि हमें अपने जीवन में ऐसी दिनचर्या अपनाना चाहिये जो शारीरिक तथा मानसिक शक्ति में वृद्धि करने में सहायक  हो।  जीवन में न केवल शारीरिक शक्ति का होना आवश्यक है बल्कि उसके साथ मनुष्य को मानसिक रूप से भी शक्तिशाली होना चाहिए।
            हमारे अध्यात्मिक दर्शन में ब्रह्म मुहूर्त में उठना जीवन के लिये सबसे ज्यादा उत्तम माना जाता है।  हमारे महान पूर्वजों ने जिस अध्यात्मिक ज्ञान का संचय किया है वह सभी प्रातःकाल उठने को ईश्वर की सबसे बड़ी आराधना माना जाता है। इससे तन और मन में शुद्धता रहती है।  प्रातःकाल का समय धर्म का माना जाता है और इस दौरान योगासन, ध्यान और मंत्रजाप कर स्वयं को अध्यात्मिक रूप से दृढ़ बनाया जाना आवश्यक है। 
अथर्ववेद  में कहा गया है कि 
व्यार्त्या पवमानो वि शक्रः पाप हत्यथा।।
           हिन्दी में भावार्थ- तन और मन में शुद्धता रखने वाला मनुष्य पीड़ाओं से दूर रहता तो पुरुषार्थी दुष्कर्म करने से बचता है।
ओर्पसूर्यमन्यातस्वापाव्युषं जागृततादहमिन्द्र इवारिष्टो अक्षितः।
             हिन्दी में भावार्थ- दूसरे लोग भले ही सूर्योदय तक सोते रहें पर शूरवीर सदृश नाश और क्षय रहित होकर समय पर जागे।
      जब देह और मन में शुद्धता होती तब आदमी स्वयं ही सत्यकर्म के लिये प्रेरित होता है।  पुरुषार्थी मनुष्यों को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि वह पाप कर्मों पर कभी नहीं विचार करते। आजकल हम समाज में जो अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति देख रहे हैं उसके पीछे दो ही प्रकार के लोग जिम्मेदार दिखाई देते हैं। एक तो वह लोग जिनके पास कोई काम नहीं है यानि वह बेकार है दूसरे वह जिनको काम करने की आवश्यकता ही नहीं है यानि वह निकम्मे हैं।  यह बेकार और निकम्मे ही मिलकर अपराध करते हैं।  हम जब जब सभ्य समाज की बात करते हैं तो वह पुरुषार्थी लोगों के कंधों पर ही निर्भर करता है। हृदय में शुद्ध और देह में दृढ़ता होने पर कोई भी लक्ष्य आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 

No comments:

विशिष्ट पत्रिकायें