हमें अपने जीवन में अनेक उतार चढ़ाव का सामना करना पड़ता है। कई बार इष्ट लोग साथ होते हैं तो दुष्ट लोग भी सामने आते हैं। ऐसे में हमेशा एकरसता में बहकर नहीं जिया जा सकता। हमें शांति पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहिए पर उसमें खलल डालने वाले के साथ अगर द्वैरथ यानि दो दो हाथ भी करना पड़े तो चूकना नहीं चाहिए। आत्मरक्षा करना हमारा अधिकार और धर्म है। जिस तरह दुनियां में ऐसे दानवीरों की कमी नहीं है जो दूसरे को दान देकर कृतार्थ करते हैं तो ऐसे दुष्ट भी कम नहीं हैं जो दूसरे का हक मारने के लिये तत्पर रहते हैं। उनसे जूझना अच्छा नहीं लगता पर उनको छोड़ने का मतलब भी अपनी शांति भंग करना है। अतः अपने अधिकार के लिये पराक्रम प्रकट करना पड़ता है।
इस विषय पर कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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बलीयसि प्रणमतां काले विक्रमतामपि।
सम्पदो नापसर्पनित प्रतीपमिप निम्नगाः।
‘‘जो लोग समय आने पर अपना कौशल तथा पराक्रम करने के साथ ही समय पर विनम्रता का भाव दिखाते हैं उनकी सपंत्ति उनका कभी साथ नहीं छोड़ती है।’’
जमदग्नेः सूतस्येव सर्वः सर्वत्र संवदा।
अनेकवृद्धजयिन प्रतापादेव भुज्यते।।
अनेकवृद्धजयिन प्रतापादेव भुज्यते।।
‘‘जमदग्नि के पुत्र परशुराम के समान सर्वत्र युद्ध जीतने वाले ही अपने प्रताप से राज करते हैं।’’
यह सही है कि इस संसार में अधिकतर लोग अहिंसक प्रवृत्ति के होते हैं। किसी से वाद विवाद हो तो विनम्रता से निपटना चाहिए। विनम्रता हिंसक से हिंसक मनुष्य को अहिंसक बना देती है। उसका दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। हालांकि इस संसार में ऐसे लोग भी बहुत हैं जो अकारण दूसरे को कष्ट देते हैं, उनके अधिकारों का अपहरण करते हैं और दूसरे को धोखा देने में उनको मजा देता है। उनके अपराध के अनुसार उनका दण्डित करने के लिये पराक्रम प्रकट करना भी आवश्यक है। जो समय के अनुसार चलते हैं उनकी संपत्ति, वैभव तथा प्रतिष्ठा में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है और उनका पतन नहीं होता।
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा 'भारतदीप',Gwalior
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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