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Friday, April 29, 2011

धन शुक्ल, शबलम तथा कृष्ण तीन प्रकार का होता है-हिन्दू धार्मिक चिंत्तन (money three tpye,shukla,shabalama and black-hindu dharmik chintan)

         धन के दो नहीं तीन रूप होते हैं। इनमें सबसे पवित्र शुक्ल धन माना गया है। हमारे पवित्र ग्रंथ हमेशा ही यज्ञ के उपयोग  में किये जाने वाले धन की पवित्रता पर जोर देते हैं। अनाधिकृत रूप से प्राप्त धन को शबलम तथा ठगी, चोरी, ब्याज तथा मिलावट से प्राप्त धन कृष्ण याकाला कहा जाता है। शबलम या कृष्ण धन से धार्मिक यज्ञ या कार्यक्रम करना वर्जित है।
हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि
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शुक्लशबलोऽसितश्चार्थ।
धन के तीन प्रकार होते हैं-शुक्ल, शबल तथा असित।
स्ववृत्युपार्जितं सर्व सर्वेषां शुक्लम्।‘
अपनी वृति से न्यायपूर्वक धन को शुक्ल या स्वच्छ धन कहा जाता है।
अनंतरवृत्युपातं शबलम्।
उत्कोचशुल्कप्राप्तमविक्रयस्य विक्रये।
कृतोपोरादास च शबलम् समुदाह्य्तम्।।
दूसरों की वृत्ति से उपार्जित तथा उत्कोच यानि अनाधिकृत रूप में घूस से प्राप्त तथा जो बेचने योग्य वस्तु नहीं  है उससे बेचकर प्राप्त धन या दूसरे के उपकार से प्राप्त धन शबलम धन कहलाता है।
अंमकरवृत्यापातं च कृष्णम्।
पाश्चिकद्यूतचौयासं प्रतिरूपकसाहरसोः।
व्याजेनोपार्जित यच्य तत्कृष्णं समेदाहतम्।।
बुरी प्रवृत्ति प्राप्त अशुद्ध तथा कपट से प्राप्त कृष्ण या काला धन कहलाता है। छल, ठगी, बेईमानी, जुआ, चोरी, मिलावट डकैती तथा ब्याज से प्राप्त धन काला धन कहलाता है।
             आजकल हम जब समाज की स्थिति देखते हैं तो घोर कलियुग की बात एकदम समझ में आती है। पूरे देश में काले धन के विरुद्ध बहुत सारी मुहिमें चल रही है पर सवाल यह है कि उसका नेतृत्व भी कौन कर रहा है? क्या उनके पास आया पूरा धन शुक्लपक्षीय है। यकीनन नहीं है। अगर हम अपने धर्मग्रंथों की बात माने तो धर्म के लिये एकत्रित पैसा हमेशा ही साफ मार्ग से आया होना चाहिए जबकि हम आजकल के अपने धार्मिक संतों और संगठनों के पास एकत्रित धन संपदा को देखें तो यकीनन वह शबलम या काले धन से एकत्रित प्रतीत होती है। जब भारत में आम आदमी के पास इतना शुक्लपक्षीय धन उपलब्ध नहीं है कि वह धर्म पर खर्च कर सकें तब यह संभव नहीं है कि इतने बड़े पैमाने पर चल रही धार्मिक गतिविधियों शबलम् या कृष्णपक्षीय धन शामिल न हो। कुछ कट्टर धार्मिक लोग धर्म के नाम पर प्राप्त धन के पवित्र होने का दावा अवश्य करें पर हमारे धर्मग्रंथ इस बात का समर्थन नहीं करते। ऐसे में आम भक्तों को ऐसे कार्यक्रमों से भी बचना चाहिए जहां पवित्र धन के पूर्ण उपयोग की संभावना न हो। इससे बेहतर तो यही है कि स्वयं ही योगसाधना, ध्यान, गायत्री मंत्र और ओम शब्द का जाप कर भक्ति करना चाहिए। दूसरी बात यह भी दूसरे के धन पर टिप्पणियां करने से अच्छा है कि भक्त स्वयं अपने ही कर्म पर ध्यान दें।
लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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