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Tuesday, April 19, 2011

तंत्र मंत्र धोखा है, शब्द सार ही सच-कबीर के दोहे (tanra mantra dhokha-kabir ke dohe)

हमारे देश में लोगों के हृदय में भगवान भक्ति का जितना अधिक भाव उतना ही तंत्र मंत्र के प्रति भी आस्था दिखाई देती है। काला जादू, माता की सवारी तथा तंत्र मंत्र सिद्धि में यह आस्था भगवान की निष्काम भक्ति के आगे बिल्कुल निरर्थक है। अनेक लोग धन प्राप्त करने के लिये सिद्धों के पास चक्कर लगाते हैं तो अनेक अपनी शारीरिक बीमारियों के लिये तांत्रिकों के चक्कर में पड़ जाते हैं। हैरानी की बात यह है कि भगवान की नियमित भक्ति करने वाले भी ऐसी ही राह पर चल पड़ते हैं क्योंकि उनको लगता है कि यह भी शायद भक्ति का ही स्वरूप है।
देश के लोगों के व्याप्त भक्ति भाव का लाभ उठाने के लिये कुछ कथित संत जादू टोने की आड़ भी लेते हैं। कुछ तांत्रिक अपनी सिद्धि बेचने के लिये माता और भैरव बाबा की मूर्तियां भी अपने घरों या आश्रमों लगा देते हैं ताकि भक्ति का भाव रखने वाले गुमराह हों।
जादू टोने के विषय पर संत कबीर कहते हैं कि
जंत्र मंत्र सब झूठ है, मति भरमो जग कोय।
सार शब्द जानै बिना, कागा हंस न होय।।
‘‘तंत्र मंत्र विद्या एकदम झूठ है। इसमें पड़कर भ्रम के मार्ग पर चलना व्यर्थ है। तत्वज्ञान ही जीवन का सार है। कौआ कभी हंस नहीं बन सकता।’’
सच बात तो यह है कि अगर जो पवित्र मंत्र हैं उनका मन में आप करने से शांति मिलती है। जैसे जैसे हम मंत्र का जाप बढ़ाते जाते हैं हमारी देह अच्छे काम करने के लिये प्रवृत्त होती जाती है। बुद्धि में तीक्ष्णता बढ़नें के साथ ही मन एकाग्र होने लगता है तब हमारे हाथ से स्वाभाविक रूप से पवित्र काम होते हैं जिनसे सात्विक लाभ होता है। इसका मतलब यह है कोई पवित्र मंत्र जाप करने से भक्त को ही लाभ होता है पर वह दूसरे को लाभ नहीं दिला सकता। यह संसार परमात्मा के संकल्प के आधार पर ही स्थित है। उसी तरह मनुष्य का संकल्प ही उसके जीवन का निर्माण करता है। कुछ लोग तो प्रेत साधना कर सिद्धि का दावा करते हैं जो तामसी प्रवृत्ति की भक्ति का परिचायक है। अतः दृढ़ता पूर्वक भगवान की भक्ति करना जो किसी अंधविश्वास में पड़ने से बेहतर है।
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लेखक संकलक एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com
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