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Sunday, January 9, 2011

काम से ही उत्पन्न होती है मांस तथा मदिरा के सेवन की प्रवृत्ति-हिन्दी चिंतन लेख (kaam, maans or meat tatha madira-hindi chitan lekh)

मनुष्य के जीवन में विपत्ति इसलिये ही आती है क्योंकि वह वासनाओं और कामनाओं के वशीभूत होकर ऐसे कर्म करता है जिनका परिणाम देखने में तत्काल सुखदायक पर कालांतर में दुःखदायी होता है। याद रखें पंचतत्वों से बनी इस देह में जब हम अपने मुख से कोई पदार्थ सेवन कर अंदर पेट में पहुंचाते हैं तो वह अपना काम करता है। कामभावना के वशीभूत मनुष्य पदार्थों के उपभोग के परिणाम से अनजान रहता है या जानते हुए भी उसे अनदेखा करता है।
आजकल तंबाकू के गंदे रासायनिक पदार्थों के पाउचों का सेवन बढ़ता जा रहा है जो अत्यंत घातक हैं। एक रुपये में आने वाले यह पाउच आज के युवाओं को बाह्य रूप से भले ही असुंदर न बना पाते हों पर आंतरिक रूप से उनको जर्जर किये जा रहे हैं। अनेक विशेषज्ञ बताते हैं कि इनमें शामिल रसायन फेफड़ों तथा हृदय पर बुरा प्रभाव डालने के साथ ही हड्डियों को भी गलाते हैं। हैरानी की बात है कि आज के शिक्षित और कंप्यूटर में दक्ष युवक युवतियां इसका उपयोग धड़ल्ले से करते हैं।
इसके अलावा शादी विवाहों पर मदिरा का सेवन एक फैशन बनता जा रहा है। हम बात तो संस्कारों और संस्कृति की करते हैं पर फैशन के नाम पर विनाश करने वाली प्रवृत्तियों का भी पालन पोषण करते हैं। धर्म की आड़ में काम को प्रश्रय दे रहे हैं। मनृस्मृति में मनु महाराज कहते हैं कि-
पानभक्षाः स्त्रियश्चैव मृगया च यथाक्रमम्।
एतत्कष्टतमृ विद्याच्चतुकं कामजे गयो।।
"काम से चार दोष मदिरा का सेवन, मांसाहार का उपभोग, स्त्रियों से संपर्क बढ़ाने तथा शिकार करने की प्रवृत्तियां स्वभाविक रूप पैदा होती हैं। इन चारों कोे जीतने का कार्य बहुत ही पीड़ादायक माना जाता है।"
दरअसल हमने संस्कारों के निवर्हन तथा कर्मकांडों की आड़ में वस्तुओं के लेनदेन और उपभोग को एक फैशन बना लिया है। अध्यात्म से इसका कोई संबंध नहीं है। यह सांसरिक पदार्थ तो केवल काम तथा वासना में वृद्धि के लिये सहायक होते हैं। यही कारण है कि हमारे देश में विलासिता की वस्तुओं के उपभोग तथा व्यसनों के सेवन के कारण अपराध तथा अहंकार की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसके रोकने कें लिये यह आवश्यक है कि अध्यात्म के प्रति अपना ध्यान बढ़ाया जाये।
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संकलक लेखक  एवं संपादक-दीपक राज कुकरेजा  'भारतदीप',Gwalior
Editor and writer-Deepak Raj Kukreja 'Bharatdeep'
http://deepkraj.blogspot.com

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