तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रिया योग।।
हिन्दी में भावार्थ-तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर की शरण लेना-ये तीनों क्रियायोग हैं।
हिन्दी में भावार्थ-तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर की शरण लेना-ये तीनों क्रियायोग हैं।
समाधिभावनार्थः क्लेशतनूकरणार्थश्च।
हिन्दी में भावार्थ-जब समाधि में सिद्धि प्राप्त हो जाती है तब अज्ञान तथा क्लेश का नाश होता है।
हिन्दी में भावार्थ-जब समाधि में सिद्धि प्राप्त हो जाती है तब अज्ञान तथा क्लेश का नाश होता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य का मन ही उसका संचालन करता है। इसी मन की दो प्रकार की स्थिति है-सहजता और असहजता। जब मनुष्य अपने अंदर आलस्य का भाव लाकर अपने काम की सिद्धि के लिये दूसरे पर निर्भर होने लगता है, या दूसरों की संपत्ति पर दृष्टि रखता है तथा भले ही वह भगवान का नाम लेता हो पर अपने कर्म के प्रति कर्तापन का अहकार उसके अंदर घर कर जाये तब वह असहजता की तरफ बढ़ जाता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने कर्म संपन्न के लिये स्वयं ही तत्पर रहता है, जीवन को सुखी रखने के लिये इंद्रियों पर नियंत्रण करने के साथ ही ज्ञानार्जन में लिप्त होता है वह सहजता को प्राप्त कर लेता है। इस सहज भाव को प्राप्त करने पर कोई भी मनुष्य कर्तापन के अहंकार को त्यागकर दृष्टा भाव से इस संसार को देखने लगता है।
तप और ध्यान से जो मनुष्य समाधि में सिद्धि प्राप्त करता है वह इस संसार के क्लेशों से मुक्त हो जाता है। इस सिद्धि का आशय यह कतई नहीं लेना चाहिये है कि मनुष्य इससे संसार की सारी भौतिक उपलब्धियों प्राप्त कर लेता है बल्कि वह भौतिक साधनों के अभाव में भी अपने मन में क्लेश या चिंता के भाव को स्थान नहीं देता। दूसरी बात यह कि उसकी भौतिक आवश्यकतायें भी इतनी कम हो जाती हैं कि उसके अंदर लालच या लोभ के भाव का लोप हो जाता है जो सुखी जीवन का एक बहुत आधार माना जाता है।
__________________संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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