प्रच्छन्नं वा प्रकाशं वा तन्निषेवेत यो नरः।
तस्य दण्डविकल्पः स्वाद्येेष्ठं नृपतेस्तथा।।
हिन्दी में भावार्थ-अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जुआ खेलने वाले लोगों को राज्य द्वारा दंड दिया जाना चाहिये।
तस्य दण्डविकल्पः स्वाद्येेष्ठं नृपतेस्तथा।।
हिन्दी में भावार्थ-अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से जुआ खेलने वाले लोगों को राज्य द्वारा दंड दिया जाना चाहिये।
द्युतमेतत्पुराकल्ये दुष्टं वैरकरं महत्।
तस्माद्द्यूतं न सेवेत हास्यार्थमपि बुद्धिमान्।।
तस्माद्द्यूतं न सेवेत हास्यार्थमपि बुद्धिमान्।।
द्यूत वह घृणित कृत्य है जिसमें खेलने वालों के बीच आपस वैमनस्य पैदा होता है। अतः बुद्धिमान पुरुष को अपने मनोरंजन के लिए जुआ में भाग नहीं लेना चाहिए।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारे देश में अनेक ऐसे परिवार हैं जो जुआ या सट्टे के कारण बर्बाद हो गये हैं। अनेक ऐसे परिवार हैं जिनके पुरखे सात पीढ़ियों के लिये कमा गये पर उनकी दूसरी या तीसरी पीढ़ी ने पूरी कमाई सट्टे और जुआ में बर्बाद कर डाले हैं। जुआ जहां प्रत्यक्ष रूप से खेला जाता है वही सट्टा अप्रत्यक्ष रूप से जुआ का ही रूप है। आजकल तो हर बात पर सट्टा लगता है। चुनाव, क्रिकेट, फुटबाल, टेनिस तथा अन्य ऐसे क्षेत्र जहां अनिश्चताओं का खेल है वहां अब सट्टा खेला जाता है। नवधनाढ्य परिवारों के युवक युवतियां इसमें अपना धन बर्बाद करते हैं। जुआ या सट्टे का कृत्य इतना घृणित है कि समझदार लोग जुआ खेलने वालों पर कभी यकीन ही नहीं करते बल्कि उनसे घृण करते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि जुआ या सट्टा खेलने वालें मनोविकारों का शिकार हो जाते हैं। स्थिति यह हो जाती है कि उनकी जेबे खाली हो जाती हैं। कहंी से कुछ पैसा मिलता है तो जुआ और सट्टा खेलने वाले उसी में लगा जाते हैं। वह अपने आत्मीय जनों को भी ठगने लगते हैं।
जुआ और सट्टा खेलने वाले बाहरी रूप से भले ही सामाजिक संबंध निभाने वाले दिखते हों पर उनका अंतकरण केवल अपने व्यसन के प्रति ही आकर्षित रहता है। अपने ही परिजनों, मित्रों और परिचतों से वह धन ऐंठकर इसमें बर्बाद करते हैं। अतः बुद्धिमान लोगों को चाहिए कि वह कभी जुआ और सट्टा न खेलें। इतना ही नहीं उनके जो अपने लोग इस व्यसन में रत हैं उन पर कभी न यकीन करें न ही उनसे आत्मीय संबंध कायम करें।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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