‘उदम करहि अनेक हरि नाम न गवाही।
भरमहि जोनि असंख पर जन्महि आवही।’
हिन्दी में भावार्थ-श्री गुरुग्रंथ साहिब के अनुसार कोई मनुष्य चाहे कितना भी उद्यम करे पर अगर परमात्मा के नाम का स्मरण नहीं करता तो उसे मुक्ति नहीं मिल सकती और वह भटकता रहता है।
भरमहि जोनि असंख पर जन्महि आवही।’
हिन्दी में भावार्थ-श्री गुरुग्रंथ साहिब के अनुसार कोई मनुष्य चाहे कितना भी उद्यम करे पर अगर परमात्मा के नाम का स्मरण नहीं करता तो उसे मुक्ति नहीं मिल सकती और वह भटकता रहता है।
‘जो जो कथै सुने हरि कीरतन ता की दुरमति नासु।
सगल मनोरथ पावै नानक पूरन हौवे आसु।।’
हिन्दी में भावार्थ-श्रीगुरुग्रंथ साहिब के अनुसार जो मनुष्य कीर्तन गाते और सुनते हैं उनकी कुमति नष्ट होती है तथा सभी प्रकार की मनोकामनायें पूरी होती हैं।
सगल मनोरथ पावै नानक पूरन हौवे आसु।।’
हिन्दी में भावार्थ-श्रीगुरुग्रंथ साहिब के अनुसार जो मनुष्य कीर्तन गाते और सुनते हैं उनकी कुमति नष्ट होती है तथा सभी प्रकार की मनोकामनायें पूरी होती हैं।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-श्री गुरुग्रंथ साहिब का हमारे देश में बहुत अध्यात्मिक महत्व है। यह किसी धर्म विशेष की पुस्तक नहीं है क्योंकि इसमें मनुष्य को सहजता सिखाने वाले संदेश मौजूद हैं और इसे पढ़कर सभी लोग सीख सकते हैं। आज के समय में अनेक बुद्धिमान लोगों को सत्संग और कीर्तन एक ढोंग लगते हैं तो कुछ लोग इनको मनोरंजन का साधन मानते है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि जब आज आधुनिक मनोरंजन के साधन उपलब्ध हैं तो फिर क्यों इस पुराने प्रकार के चक्कर में पड़ा जाये।
यह अज्ञान से उपजा भ्रम हैं। सत्संग और कीर्तन में शामिल होने का मतलब है कि कुछ देर अपने ध्यान को इस संसार से हटकार निष्काम प्रवृत्तियों की तरफ लगाना। जबकि आधुनिक मनोरंजन प्रसारणों में इसी संसार की वह बातें होती हैं जिनके साथ हम पूरा दिन जुड़े रहते हैं। मूर्ति पूजा की अनेक आलोचक भले ही खिल्ली उड़ाते हैं पर उनको इस बात का पता नहीं कि यह ध्यान को इस संसार से हटकार उसमें शुद्धता लाने का यह एक महत्वपूर्ण साधन है। जिस तरह कोई गाड़ी हम धुलवाने के लिये गैरेज भेजते हैं उसी तरह अपने मन और बुद्धि को कामनाओं से हटाकर पूजा, कीर्तन और सत्संग में शामिल होकर एक तरह से अपने मन और बुद्धि को निष्काम गैरेज में शुद्ध किया जाता है।
गुरुनानक जी ने इस देश में फैले अंधविश्वास को दूर करने का संदेश दिया था। अगर उनके बताये मार्ग पर चला जाये तो हमारा देश स्वर्ग बन सकता है। कामनाओं की पूर्ति के लिये हम सदैव लगे रहते हैं पर इससे केवल हमारे पास भौतिक वैभव की प्रचुरता हो सकती है पर मन को शांति नहीं मिल सकती। अतः यह जरूरी है कि ध्यान, योग तथा भक्ति कर अपने अंदर शुद्धता लायी जाये।
संकलक, लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwaliorhttp://deepkraj.blogspot.com
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