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Sunday, January 10, 2010

विदुर नीति-शक्तिहीन होने पर क्रोध न करें (shakti aur krodh-hindi dharam sandesh)

द्वावेव न विराजेते विपरीतेन कर्मणा।
गृहस्थश्चय निरारम्भः कार्यवांश्चैव भिक्षुकः।।
हिन्दी में भावार्थ-
नीति विशारद विदुर जी के अनुसार अकर्मयण्य गृहस्थ और तथा सांसरिक बातों में लगा भिक्षुक सन्यासी अपने लिये निश्चित कर्म के विपरीत आचरण करने के कारण शोभा नहीं पाते।

द्वाविमौ कपटीकौ तीक्ष्णी शरीरपरिशोषिणी।
पश्चाधनः कामयते यश्च कुप्यत्यनीश्वरः।।
हिन्दी में भावार्थ-
नीति विशारद विदुर जी के अनुसार जो गरीब होकर भी कीमती वस्तु की कामना करता है और शक्तिहीन होने पर भी क्रोध करता है वह अपने शरीर को सुखाने के लिये काम करते हैं।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हर आदमी को अपनी स्थिति के अनुसार ही कदम बढ़ाना ही चाहिये। इसके अलावा अपने नियत कर्म से पृथक होकर अन्य गतिविधि में बिना उद्देश्य ही सक्रिय न हों क्योंकि हर चीज हरेक को शोभा नहीं देती। केवल उन्हीं वस्तुओं के संग्रह की चिंता करना चाहिये जो कि अपने परिवार के लिये आवश्यक हों पर इस बात का ध्यान रखें कि उसके लिये हमारे उसकी प्राप्ति के लिये पास आय का पर्याप्त साधन भी होना चाहिये। आजकल लोग पैसा न होने पर कर्जा लेते हैं और फिर उसे न चुकाने पर चिंता करते हुए अपने शरीर को सुखा डालते हैं। जहां तक मन की बात है तो किसी भी नयी चीज को देखकर उसे पाने के लिये मचलता है तब अपनी बुद्धि इसके लिये काम नहीं करती कि उसकी पूर्ति कैसे होगी?
इसके अलावा कहीं भी किसी भी समय क्रोध करने से बचना चाहिये। खासतौर से वहां जहां अपने से अधिक पदारूढ़, धनवान तथा बाहुबली लोग हों। यह कायरता का नहीं बल्कि सतर्कता बरतने का लक्षण है। मूर्खों को ज्ञान देने, नवधनाढ्य को दान के लिये कहने, पदारूढ़ को विनम्रता के लिये समझाने और बाहुबली को दया के लिये प्रेरित करने के लिये प्रयास में अपना समय व्यर्थ ही करना है। कहीं आपने क्रोध किया तो बहुत जल्दी अपनी शक्तिहीनता का पता भी लग जायेगा। कहने का अभिप्राय यह है कि हमेशा सोच समझकर कदम आगे बढ़ाना चाहिये, ताकि बाद में उसके लिये पछताना न पड़े।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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