रिपूं वातस्य बलिनः संप्राप्याविश्कृतं फलम्।
उपेक्ष्यतनिमत्रयानमुयेक्षायानमुच्यते।।
हिन्दी में भावार्थ-जब शक्तिशाली राजा किसी अन्य राज्य पर आक्रमण करे और सफलता न मिले तो उसकी उपेक्षा कर देना चाहिये।
निवातकवचान् हित्वा हिरण्यपुरवासिनः।
उपेक्षयानमास्याय निजधान धनजयः।।
हिन्दी में भावार्थ-महाभारत काल में अर्जुन ने हिरण्यपुर वासी जनों को छोड़कर उनकी उपेक्षा करते हुए निवातकवचों का सहंार किया था।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जीवन में कभी भी असफलता से घबड़ाने की बजाय उसकी उपेक्षा करते हुए अपने नये लक्ष्य की तरफ बढ़ना चाहिये। यह उपेक्षासन हमें तनाव से मुक्ति दिलाता है। सभी मनुष्य अपनी बुद्धि और विवेक से जीवन में विकास पथ पर अग्रसर होते हैं पर कहीं सफलता तो कहीं असफलता मिलती है। समझदार मनुष्य अपनी असफलताओं से विचलित हुए बिना उपेक्षासन करते हुए अपनी राह पर दूसरे लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ जाते हैं। इसके विपरीत जो असफलताओं की सोचकर बैठे रहते हैं वह जीवन में कभी खुश नहीं रह पाते। वैसे हमें अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिये योजनापूर्वक काम करना चाहिये पर यह दुनियां हमेशा हमारे अनुसार नहीं चलती। इसलिये हमारी योजना का जो भाग दूसरे पर निर्भर है उसके बारे में कोई बात निश्चितता से नहीं कही जा सकती है। अनुमान सही न होने या गलत निकलने पर जब दूसरे के योगदान का विषय गड़बड़ाता है तब हमारा अभियान अनेक बार शिथिल पड़ जाता है। इससे घबड़ाना नहीं चाहिये। मनुष्य का धर्म है कि वह हमेशा कर्म करता रहे। सफलता का आनंद तो वह उठाता ही है पर अगर असफलता मिले तो उपेक्षासन कर उसके तनाव से मुक्ति भी पा सकता है। समय का फेर होता है कभी कभी असफलता भी प्रेरणा कर कारण बनती है-इतिहास में ऐसे अनेक प्रमाण मौजूद हैं।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Saturday, January 9, 2010
कौटिल्य का अर्थशास्त्र-असफलता के तनाव से उपेक्षासन कर छुटकारा पायें (upekshasan-hindi sandesh)
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