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Tuesday, January 12, 2010

भर्तृहरि शतक-अपना लक्ष्य बीच में नहीं छोड़ें (hindu dharm sandesh-apna lakshya

 रत्नैर्महाहैंस्तुतुषुर्न देवा न भेजिरेभीमविषेण भीतिम्।

सुधा विना न प्रययुर्विरामं न निश्चिततार्थाद्विरमन्ति धीराः।।

हिन्दी में भावार्थ-
समुद्र मंथन करने से देवता लोग अनमोल रत्न पाकर भी प्रसन्न नहीं हुए। भयंकर विष भी निकला पर उनको उससे भय नहीं हुअ और न ही वह विचलित हुए। जब तक अमृत नहीं मिला तब तक वह समुद्र मंथन के कार्य पर डटे रहे। धीर, गंभीर और विद्वान पुरुष जब तक अपना लक्ष्य नहीं प्राप्त हो तब अपना कार्य बीच में नहीं छोड़ते

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय-वैसे तो जीवन में अपना लक्ष्य तक करना बहुत कठिन है क्योंकि लोग अपने विवेक से कुछ नया करने की बजाय दूसरे की उपलब्धियों को देखकर ही अपना काम प्रारंभ करते हैं। अगर तय कर लिया तो फिर उस पर निरंतर चलना कठिन है।  होता यह है कि दूसरे की उपलब्धि देखकर वैसे बनने की तो कोई भी ठान लेता है पर उसने अपने लक्ष्य पाने में क्या पापड़ बेले यह किसी को नहीं दिखाई देता।  उसने लक्ष्य प्राप्ति के लिये कितना परिश्रम करते हुए अपमान और तिरस्कार सहा होगा यह वही जानते है।  जिन्होंने  बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है उसके पीछे उनका धीरज और एकाग्रता बहुत बड़ा योगदान होता है।

इसके अलावा एक बात यह भी है कि बहुत कम लोगों में धीरज होता है। आज कल संक्षिप्त मार्ग से उपलब्धि प्राप्त करने की परंपरा चल पड़ी है। अगर किसी युवक को धीरज या शांति से काम करने का उपदेश दें तो वह यही कहते हैं कि‘आजकल तो फटाफट का जमाना है।’

वह लगे रहते हैं फटाफट उपलब्धि प्राप्त करने में  पर वह कभी लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाते।  अनेक युवक इसी तरह अपराध मार्ग पर चले जाते हैं।  उसके परिणाम बुरे होते हैं।

जिनको अपना जीवन सात्विक ढंग से शांतिपूर्वक बिताना है उनको समुद्र मंथन के अध्यात्मिक धार्मिक उदाहरण से प्रेरणा लेना चाहिये।


संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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