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Sunday, December 13, 2009

संत कबीर वाणी-निंदक तो नकटा होता है (nindak bura hota hai-sant kabir vani)

निन्दक ते कुत्ता भला, हट कर मांडे शर
कुत्ते ते क्रोधी बुरा, गुरू दिलावै गार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी का कहना है कि निन्दक से कुत्ता भला है जो दूर होकर भौंकता है। इतना ही नहीं कुत्ते से बुरा वह क्रोधी व्यक्ति है जो अपने गुरु को अपने आचरण के कारण गाली पड़वाता है।
निन्दक तो है नाक बिन, सोहै नकटो मांहि।
साधूजन गुरुभक्त जो, तिनमें सोहै नांहि।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी के मतानुसार निन्दक तो बिना नाक वाला है। वह नकटों में ही शोभा पता है। जो साधु प्रवृत्ति के लोग हैं वह नकटों में नहीं शोभा पा सकता।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-मनुष्य की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह दूसरे की निंदा कर अपने को श्रेष्ठ साबित करता है। यह इतनी स्वाभाविक है कि इसका आभास थोड़ा बहुत अध्यात्मिक ज्ञान रखने को भी घेर लेती है। किसी दूसरे के दुर्गुण का बखान या पीड़ा का मजाक उड़ाना अत्यंत निकृष्ट कार्य है पर इससे कौन बच पाता है। स्थिति यह है कि आजकल प्रचार माध्यमों में दूसरे के दोषों या पीड़ाओ का बखान एक व्यवसायिक प्रवृत्ति बन गयी है। अपने दोष कोई नहीं देखता। दूसरे के व्यक्तित्व का नकारात्मक अध्ययन कर लोग बहुत प्रसन्न होते हैं जबकि आत्ममंथन कर अपने दोष देखने का काम किसी को न करना आता न ही करना चाहते हैं। कहना चाहिये कि हम एक तरह से नकटे समुदाय के सदस्य हैं।
अक्सर लोग कुत्ते को लेकर तमाम तरह की टिप्पणियां करते हैं पर उसका यह गुण है कि वह दूर होकर भौंकता है पर काटता नहीं जबकि इंसान की स्थिति तो उससे भी बदतर है कि वह न केवल पास रहकर भी दूसरे के सामने निंदा करता है और जरूरत समझे तो एक ही थाली में खाकर विश्वासघात भी करता है। सच बात तो यह है कि दूसरे की निंदा करना ही एक पाप है। यह अलग बात है कि इसका ज्ञान तो सभी देते हैं पर इस राह पर बड़े बड़े संत भी नहीं चल पाते। जिसे मनुष्य जीवन का पूरा आनंद प्राप्त करना है वह अगर परनिंदा छोड़ दे तो इस धरती पर ही स्वर्ग की अनुभूति अनुभव करता है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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3 comments:

Unknown said...

jai ho .......

ek ek shabd moti !

anmol vachan !

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर विचार व व्याख्या।

मनोज कुमार said...

अच्छी लगी रचना।

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