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Thursday, December 31, 2009

भर्तृहरि शतक-सच्चे तेजस्वी लोग दूसरों से ईर्ष्या नहीं करते (hindi dharama sandesh-tejsavi log aur eershaya)

सन्त्यन्येऽपि बृहस्पतिप्रभृतयः सम्भाविताः पञ्चषास्तान्प्रत्येष विशेष विक्रमरुची राहुनं वैरायते।

द्वावेव ग्रसते दिवाकर निशा प्राणेश्वरी भास्वरौ भ्रातः! पर्यणि पश्च दानवपतिः शीर्षवशेषाकृतिः।।

हिन्दी में भावार्थ-
आसमान में विचरने वाले बृहस्पति सहित पांच छह तेजवान ग्रह है लेकिन अपने पराक्रम में रुचि रखने वाला राहु उनसे ईष्र्या या बैर नहीं रखता। वह पूर्णिमा तथा अमास्या के दिन सूर्य और चंद्रमा को ग्रसित करता है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-किसी भी व्यक्ति के गुण, ज्ञान और शक्ति की पहचान उसके लक्ष्य से होती है।  जिन लोगों को अपना  ज्ञान अल्प होते हुए सम्मान पाने का मोह होता है वह पूर्णता प्राप्त किये बिना ही अपना अभियान प्रारंभ करते हैं।  कहीं सम्मान तो कहीं धन पाने का मोह होने के कारण उनकी रुचि अपने ज्ञान, शक्ति या गुण से दूसरे को लाभ देने की बजाय अपना हित साधना होता है।  अल्पज्ञानी, धैर्य से रहित तथा मोह में लिप्त ऐसे लोग समय पड़ने पर आत्मप्रंवचना से भी बाज नहीं आते। उनका लक्ष्य किसी तरह दूसरे आदमी को प्रभावित कर उसे अपने चक्कर में फांसना होता है।

आजकल तो मायावी नायकों को ही असली नायक की तरह प्रचारित किया जाता है। ऐसे लोगों को देवता बनाकर प्रस्तुत किया जाता है जिन्होंने समाज में किसी का कल्याण करने की बजाय अपने लिये संपत्ति ही जुटाई है।  लोग भ्रमित हो जाते हैं कि क्या वाकई उनमें ऐसी कोई असाधारण बात है जो उनमें नहीं है।

इस संसार में माया को पाने का मोह रखने वाले दूसरे के भ्रम से ही कमाते हैं इसलिये अपने अंदर ज्ञान का होना जरूरी है ताकि उनकी चालों से विचलित न हों। जो वास्तव में तत्वज्ञानी, शक्तिशाली और गुणी हैं वह प्रदर्शन करने के लिये नहीं निकलते क्योंकि उनके पास ज्ञान, शक्ति और गुण संग्रह से ही अवसर नहीं मिलता। वह स्वयं बाहर निकल शिष्य ढूंढकर गुरु की पदवी से सुशोभित होने का मोह नहीं पालते। अक्सर लोग यह सवाल कहते हैं कि ‘आजकल अच्छे गुरु मिलते ही कहां है? अगर हैं तो हम उसे कैसे ढूंढें।’

उनहें भर्तृहरि महाराज के संदेश से प्रेरणा लेना चाहिए। उन्हें ऐसे व्यक्ति की तलाश करना चाहिये जो दूसरों की उपलब्धि से द्वेष न करते हुए अपने ही सृजन कार्य में लिप्त रहता हो। सम्मान और धन पाने के लिये लालच का मोह उसकी आंखों में दृष्टिगोचर नहीं होता।  वह गुरु बनने के लिये प्रचार नहीं करता।  उसका लक्ष्य तो केवल अपना जीवन मस्ती में जीने के साथ ही ज्ञान, शक्ति और गुण प्राप्त करने के लिये नियमित अभ्यास तथा परीक्षण करना होता है।

संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://deepkraj.blogspot.com

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