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Friday, July 31, 2009

रहीम के दोहे-ग़लत आदतों में आदमी अपनी संपत्ति गँवा देता है (rahim ke dohe-bhram aur galat adat)

संपति भरम गंवाइ के, हाथ रहत कछु नाहिं
ज्यों रहीम ससि रहत है, दिवस अकासहिं मांहि

कविवर रहीम कहते हैं कि भ्रम में आकर आदमी तमाम तरह की आदतों का शिकार हो जाता है और उसमें अपनी संपत्ति का अपव्यय करता रहता है और एक दिन ऐसा आ जाता है जब उसके पास कुछ भी शेष नहीं रह जाता। इसके साथ ही समाज में उसकी प्रतिष्ठा खत्म हो जाती है।
संतत संपति जानि कै, सबको सब कुछ देत
दीन बंधु बिन दीन की, कौ रहीम सुधि लेत

कविवर रहीम कहते हैं कि जिनके पास धन पर्याप्त मात्रा में लोग उनको सब कुछ देने को तैयार हो जाते हैं और जिसके पास कम है उसकी कोई सुधि नहीं लेता।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-इस संसार में माया का खेल विचित्र है। वह कभी स्थिर नहीं रहती। आजकल जितने धन के उद्भव के काले स्त्रोत बने हैं उतने उसके पराभव के मार्ग बने हैं। ऐसे अनेक लोग हैं जिन्होंने अपने पद, प्रतिष्ठा और परिवार के नाम पर गलत तरीके से अथाह धनार्जन किया पर उनके घर के सदस्यों ने ही गलत मार्ग अपना कर जूए, शराब, सट्टे तथा अन्य व्यसनों में तबाह कर दिया। देखने के लिये अनेक भले लोग अपने धन का अहंकार दिखते हैं पन अपने बच्चों की आदतों से उनका मन हमेशा विचलित होता है। हालांकि कुछ लोग अनाप-शनाप पैसा कमा रहे हैं और अपने बच्चों के विरुद्ध शिकायत न तो सुनते हैं और न ही कोई उनके सामने करता है।

यह कारण है कि आजकल जो कथित बड़े लोग उनके अनेक घर के रहस्य जब सामने आते हैं तो लोग हैरान रह जाते हैं। उनका अपने परिवार पर बस नहीं हैं। कई लोग तो जिनका नाम था अब इसलिये गुमनाम हो गये क्योंकि उनका धन पूरी तरह गलत कामों की वजह से तबाह हो गया। उनकी चर्चा अब इसलिये नहीं होती क्योंकि जिनके पास धन नहीं है उनकी चर्चा भला कौन करता है? इसके बावजूद भी शिक्षित और कथित ज्ञानी लोग भी वैभवशाली लोगों का चाटुकारिता करते हैं और गरीब को अनदेखा करते हैं। अमीर के दौलत से कुद पाने के लिये ही वह लोग उनके इर्दगिर्द चक्कर लगाते है। गरीब को तो वह पांव की जुती समझते हैं। इसके बावजूद हमें समझदार होना चाहिए और सबके प्रति समान व्यवहार करना चाहिए। ऐसा भी होता है कि अमीर की चाटुकारिता करते रहो पर हाथ कुछ नहीं आता। कोई अमीर किसी की बिना कारण सहायता नहीं करता। यह हमें समझना चाहिए। अगर कोई हमारी सहायता करने आ रहा है तो समझ लो उसका कोई स्वार्थ है।
अतः अगर अपने पास अगर धन कम हो तो यह मान लेना चाहिए कि लोग आर्थिक सहयोग तैयार करने के लिये कम ही तैयार होंगे। साथ ही इस बात की चिंता नहीं करना चाहिए कि कोई सम्मान करेगा या नहीं। अगर धन अधिक हो तो दूसरों द्वारा सहयोग की पेशकश को अपने गुणों का प्रभाव न समझते हुए यह मान लेना चाहिए कि हमारे धन की वजह से दूसरे प्रभावित हैं।
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