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Wednesday, July 22, 2009

चाणक्य नीति-थोड़े अभ्यास से भी ज्ञान का घड़ा भर जाता है (chankya niti-abhyas aur gyan)

जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्वते घटः।
स हेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च।।
हिंदी में भावार्थ-
जिस तरह एक एक बूंद से घड़ा भर जाता है उसी तरह नित प्रतिदिन थोड़े थोड़े अभ्यास से समस्त विद्यायें, धन और धर्म में भी श्रीवृद्धि की जा सकती है।
नाह्यरं चिन्तयेत् प्राज्ञो धर्ममेक्र हि चिन्तयेत्।
आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते।।
हिंदी में भावार्थ-
जो मनुष्य ज्ञानी और धर्मपरायण होते हैं वह कभी भी भोजनादि की चिंता त्यागकर हमेशा ही धर्म संचय में लगे रहते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि मनुष्य के आहार का भाग तो उसके जन्म के साथ ही इस धरती पर उत्पन्न हो गया था।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-अक्सर लोग भक्ति, योगसाधना और प्राणायम का अभ्यास न करने का कारण समय न मिलना बताते हैं जबकि यह केवल झूठ के अलावा कुछ नहीं होता। हम सब जानते हैं कि कितना समय आलस्य और फालतू कामों में बिताते हैं। इसके अलावा कुछ लोग कहते हैं कि हमें किसी ने सिखाया नहीं है या कोई सिखाने वाला नहीं मिल रहा जबकि सच यह होता है कि उनके अंदर सीखने का संकल्प ही नहीं होता। जो व्यक्ति तय कर ले कि वह भगवान भक्ति और साधना करेगा उसके लिये सीखने और ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग स्वतः ही खुल जाते हैं। आदमी एक बार सीखकर नित प्रतिदिन अभ्यास करे तो शेष ज्ञान तो स्वतः ही उसके पास आ जाता है। श्रीगीता का रोज एक श्लोक भी पढ़ा जाये तो भी वह हमें ज्ञानी बना सकता है। जिस तरह एक बूंद बूंद से घड़ा भरता है उसी तरह एक या दो श्लोक का अभ्यास किया जाये तो ज्ञान का घड़ा भी निश्चित रूप से भर सकता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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