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Thursday, July 23, 2009

संत कबीर वाणी-दुःख लेने कोई नहीं जाता (sant kabir vani-dukh aur sukh)

दुख लेने जावै नहीं, आवै आचा बूच।
सुख का पहरा होयगा, दुख करेगा कूच।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि दुःख लेने कोई नहीं जाता। आदमी को दुखी देखकर लोग भाग जाते हैं। किन्तु जब सुख का पहरा होता होता है तो सभी पास आ जाते हैं।
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अगर अपने मन में शीतलता हो तो इस संसार में कोई बैरी नहीं प्रतीत होता। अगर आदमी अपना अहंकार छोड़ दे तो उस पर हर कोई दया करने को तैयार हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-जब आदमी के पास कोई दुःख आता है तो रिश्तेदार, मित्र और साथी उसे छोड़कर परे हो जाते हैं। उनको डर लगता है कि उनसे वह आदमी कोई सहायता की याचना न करे। अगर आदमी के पास धन संपदा और पद है तो उसके आसपास अनेक लोग आशाओं के साथ मंडराते हैं कि पता नहीं कब उससे काम पड़ जाये। यह दुनियां का एक नियम हैं। इसलिये अपने जीवन में संयम, शांति और विनम्रता के पथ पर ही अपने पांव रखना चाहिये। किसी के कहने में आकर असंयमित, क्रोधित और अहंकारी होना मनुष्य के लिये हमेशा घातक होता है।

अहंकार तो एक तरह से मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। आदमी को जब धन, पद और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है तब वह यह समझता है कि यह सब उसे अपनी मेहनत और पराक्रम से मिला है। तब वह यह विचार नहीं करता कि उस तरह की मेहनत अन्य लोग भी करते हैं पर सभी शिखर पर नहीं पहुंच जाते। इस तरह का अहंकार होने से आदमी अपने लिये शत्रु बना लेता है। अगर आदमी यह अहंकार छोड़ कर मन में विनम्रता का भाव रख तो उसे सभी मित्र नजर आयेंगे। विनम्रता का भाव रखने वाले पर जब कोई विपत्ति आती है तब उसकी सहायता करने के लिये हर कोई तैयार हो जायेगा।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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