करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग
कविवर रहीम कहते हैं कि जिनकी प्रवृत्ति उजली और पवित्र है अगर उनकी संगत नीच से न हो तो अच्छा ही है। नीच और दुष्ट लोगों की संगत से कोई न कोई कलंक लगता ही है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-सज्जन और उज्जवन प्रकृति के लोग शांत रहते हैं इसलिये उनको ऐसे लोगों की संगत नहीं करना चाहिये जो दुष्टता और अशांत प्रवृत्ति के होते हैं। वैसे आजकल के लोगों में यह प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है कि वह दलाल और दादा प्रवृत्ति के लोगों की संगत चाहते हैं ताकि कोई उनका कोई बिगाड़ नहीं सके। फिल्म देखकर यह धारणा बना लेते हैं कि दादा लोग किसी से किसी की भी रक्षा कर सकते हैं। कई सज्जन परिवार को लड़के भी भ्रमित होकर दादा किस्म के लड़कों के चक्कर में पड़ जाते हैं तो कई लड़कियां भी अपने लिये ऐसे मित्र चुनती है जो दादा टाईप के हों। उनको लगता है कि वह दादा किस्म के मित्र इस समाज में प्रतिष्ठित होते हैं। देश में इसलिये ही सभी जगह अपराधीकरण का बोलबाला हो रहा है क्योंकि जो उज्जवल और शांत प्रकृत्ति के हैं वह अपना विवेक खोकर ऐसे लोगों को संरक्षण देते हैं जो समाज के लिये खतरा है।
यह बात समझ लेना चाहिये कि बुरे का अंत बुरा ही होता है। दादा और दलाल आकर्षक लगते हैं पर उनकी समाज में कोई सम्मान नहीं होता। बुराई का अंत होता है और ऐसे में जो दुष्ट लोगों की संगत करते हैं उनको भी दुष्परिणाम भोगना पड़ता है।
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1 comment:
बहुत सुन्दर। आभार
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