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Saturday, April 19, 2008

संत कबीर वाणी:खेत में फ़ैली मिसरी को हाथी नहीं चुन सकता

मिसरी बिखरी खेत में, हस्ती चुनी न जाए
कीड़ी ह्वै कर सब चुनै, तब साहिब कू पाए


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि यदि खेत में मिसरी बिखरी पड़ी है तो हाथ उसे नहीं चुन सकता जबकि चींटी उसे चुन कर खाती है। व्यक्ति नम्रता से ही कुछ पा सकता है अहंकार से नहीं।

कबीर नवै सो आपको, परको नवै न कोय
घालि तराजू तोलिये, नवै सो भारी होय


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यदि कोई अपने अगर किसी में नम्रता का गुण के कारण झुकता है तो वह उसके संस्कारों और योग्यता का मापदंड है जैसे तराजू वह पलड़ा जिसमें वजन होता है नीचे झुकता और जिसमें नहीं वह उठा रहता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-जैसे हमारा समाज अपने अध्यात्मिक ज्ञान से दूर होता जा रहा है वैसे ही तमाम तरह का तनाव बढ़ रहा है। लोगों को विद्यालयों में अर्थशास्त्र, गणित, विज्ञान, सांख्यिकी, भौतिकी, इतिहास तथा अन्य विषयों की शिक्षा तो दे रहे हैं पर संस्कारों के लिये जिस अध्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकता है उससे सब परे हैं। जिन माता पिता ने यह शिक्षा अपने बुजुर्गों से प्राप्त की है वह भी अब उसे भूल कर इस मायामय संसार में अपने बच्चों को मायावी बनाना चाहते हैं। उनसे अपेक्षा करते हैं कि वह किसी भी तरह धनार्जन कर समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढ़ायें इसलिये उनको अध्यात्मिक शिक्षा देना तो दूर उससे परे रखना चाहते हैं। परिणाम सबके सामने है।
अहंकार ऐसा गुण है जो इस देह के साथ पैदा होते ही आता है इसलिये उस पर नियंत्रण के लिये बच्चे को छोटे में ही अध्यात्मिक शिक्षा की आवश्यकता होती है। उससे परे रहने के कारण उनमें हिंसक प्रवृति छोटी आयु मेंे ही घर करने लगती हैं। आजकल हम स्कूलों में बच्चों द्वारा अपने साथी छात्रों की हत्या के समाचार पढ़ते रहते है वह इसी अहंकार की प्रवृत्ति का परिणाम है अब हम भले ही यह कहते रहें कि बच्चे हैं हो जाता है पर वास्तविकता यह है कि बड़ों का कोई भी गुण या दुर्गुण बच्चे जल्दी ग्रहण करते हैं और जिन बच्चों में हिसा और घृणा का भाव है वह उनके परिजनों की ही देन है।

इसलिये अपने तथा बच्चों के अंदर नम्रता का भाव आये इसके लिये उनको शुरू में ही अध्यात्म की तरफ प्रेरित करना चाहिए। उनके सामने घर में भगवान की आरती गानी चाहिए और समय समय पर उनको मंदिर भी ले जाना चाहिए ताकि भगवान की मूर्ति के आगे शीश नवाने से उनमें नम्रता का भाव आये।
नोट-यह इस ब्लोग की २०० वीं पोस्ट है। पाठकों और मित्रों के स्नेह और ईश्वरीय प्रेरणा के यह संभव नहीं था क्योंकि यह ब्लोग मैंने क्यों शुरू किया मुझे स्वयं भी पता नहीं था। मैं इस पर क्यों और कैसे लिखता हूँ यह भी नहीं मालुम। कोई अदृश्य शक्ति है जो मुझसे यह लिखवाती है ऐसा लगता है और वह मित्रों और और पाठकों के स्नेह और ईश्वरीय प्रेरणा के और कौन हो सकता है।

1 comment:

Udan Tashtari said...

उम्दा व्याख्या, मित्र.

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