आज हनुमान जयंती है। हनुमान जी में हªदय से भक्तिभाव रखने वाले लोग उनके प्रभाव को जानते है। हनुमान जी के चरित्र को आज के संदर्भों में देखें तो ऐसा लगता है कि उनमें भक्तिभाव रखने के साथ उनके चरित्र की भी चर्चा करना चाहिए। श्री हनुमान जी के चरित्र के मूल में उनका भगवान श्रीराम के प्रति ‘सेवाभाव‘ और ‘भक्ति भाव’’ और श्री सुग्रीव के प्रति मैत्रीभाव सदैव लोगों को आकर्षित करता रहा है। मैं जब उनका स्मरण करता हूं तो ‘सेवक से स्वामी’और ‘भक्त से भगवान’ बनने वाले एक इष्ट की तस्वीर मेरे मस्तिष्क में उभरती है। यह तस्वीरे मस्तिष्क में इस तरह स्थापित है कि जब प्रति मंगलवार जब मंदिर जाता हूं तो उनकी वहां स्थापित तस्वीर से अधिक मेरे हªदय में स्थापित तस्वीर आकर्षित किये रहती है और लगता है वही मेरे सामने है।
वर्तमान में जब समाज की हालत देखता हूं तो लगता है कि हनुमान जी चरित्र के मूल गुणों की भी व्याख्या करना चाहिए। आजकल लोग सेवक की बजाय स्वामी बनने के लिये आतुर रहते है और जिनके हाथ में वैभव का भंडार है वह भगवान बनकर अपने लिये भक्तों को खरीदना चाहते है। हनुमान जी का राम और सुग्रीव के प्रति जो समर्पण का भाव था वह सत्य और धर्म की वजह से था-न कि उसके पीछे उनका कोई स्वार्थ था।
श्री राम मर्यादा पुरुषोतम थे ओर किसी भी स्थिति में उन्होंने धर्म से मूंह नहीं मोड़ा। सुग्रीव ने हर स्थिति में श्रीराम को सहायता का आश्वासन दिया था। जब राजपाट मिल गया और उन्होंने वैभव और व्यसनों के मायाजाल में फंसकर अपना मूल कर्तव्य भुला दिया। तब एक हनुमान ही थे जो उन्हें लगातार समझाते रहे कि उन्हें अपने कर्तव्य का स्मरण करना चाहिए। श्रीसुग्रीव ने उनकी बात मान ली और उन्हे अपनी सेना तैयार होने का आदेश दिया। इसी बीच कुपित लक्ष्मण जब उनके महल में दाखिल हो गये तो सबसे पहले हनुमानजी ने ही उन्हें अपनी चतुराई और वाक्पट्ता से उनको प्रसन्न किया। श्रीलक्ष्मण जी उनकी बात सुनकर ही शांत हुए। इस प्रसंग में यह स्पष्ट होता है कि श्रीहनुमान जी कोई सामान्य वानरजातीय मनुष्य नहीं वरन् समय, देशकाल तथा राज्य की परिस्थितियों का ज्ञान रखने वाले विद्वान थे। उन्हें राजनीति का भी अच्छा ज्ञान था। वानरों के राज्य में सुग्रीव के बाद श्री हनुमान जी को ही सम्मान होना उनके बाहूबल के साथ उनके बुद्धिमान होने का भी प्रमाण था।
जब सीता जी की खोज में सब वानर थक गये तब उनके नेता अंगद का धीरज टूट गया और वह आमरण अनशन पर बैठ गये। श्री हनुमान ने तब विचार किया कि इस तरह तो अंगद संभवतः सुग्रीव का राज्य छीन लेंगे-कारण वानरों में कष्ट सहने की क्षमता वैसे ही कम होती है, और जब भूख से यह लोग बिलबिलाऐंगे ओर उनको परिवार की याद आयेगी तो वह उग्र हो जायेंगे और सुग्रीव का भय इनमें समाप्त हो जायेगा। तब वह अंगद को आगे कर उनसे लड़ने को भी तैयार हो जायेंगे।
विचार करते हुए श्रीहनुमान जी ने वहां सब वानरों को आपनी वाक्पट्ता से अंगद से अलग कर दिया और फिर उनको समझाने लगे कि यह वानर आपका लंबे समय तक साथ देने वाले नहीं है पर इससे आप सुग्रीव को जरूर नाराज कर लेंगे। उनकी बात का अंगद पर प्रभाव हुआ और वह अपना अभियान आगे जारी रखने को तैयार हुए। इस प्रसंग से श्रीहनुमान जी के रणनीतिक चातुर्य और बौद्धिक कौशल की जो अनूठी मिसाल मिलती है वह विरले ही चरित्रों में होती है।
उनका एक गुण जिसने उनके चरित्र को भगवान पद पर प्रतिष्ठित किया वह है अहंकार रहित होना। इतने शक्तिशाली और बुद्धिमान होते हुए भी किसी को हानि पहुंचाना या अपमानित करने जैसा कार्य उन्होंने कभी नहीं किया। वह अपनी शक्ति का स्मरण तक नहीं करते थे। जब लंका जाने का प्रश्न आया तो सब घबड़ा गये तब जाम्बवान ने श्रीहनुमान को अपनी शक्ति का स्मरण कराकर इस कार्य के लिये प्रेरित किया तब वह तैयार हो गये। जरा हम आजकल लोगों को देखों थोड़ा धन, छोटा पद, और छोटी सफलता में ही मदमस्त हो जाते है। उन्हें श्रीहनुमान जी यह सीखना चाहिए कि शक्ति का प्रदर्शन दूसरों का दिखाने के लिये वरन् उनके हित के लिये करना चाहिए।
मैंने श्रीहनुमान जी के चरित्र की जो चर्चा की उसे हर कोई जानता है। मेरा मानना है चर्चा फिर भी होती रहना चाहिए। जब हम किसी के अच्छे गुणों की चर्चा करते हैतो वह धीरे धीरे हम में भी स्थापित हो जाते है और हम कभी किसी की बुराईयों की चर्चा करते हैं तो वह भी हमारे अंदर आ जाती है। इसीलिये सार्थक चर्चा जिन्हें मैं सत्संग का ही रूप मानता हूं करते रहना अच्छा लगता है
समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-
पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
हिंदी मित्र पत्रिका
यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं।
लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Sunday, April 20, 2008
सेवक होकर स्वामी जैसा पाया सम्मान, जय श्री हनुमान
Labels:
adhyatm,
bharatdeep,
hindi article,
hindu,
internet,
shree hanuman,
संदेश,
हिन्दी सहित्य
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अन्य लोकप्रिय ब्लोग/पत्रिकायें
विशिष्ट पत्रिकायें
-
मत का अधिकार था भगवान हुए मतदाता-दीपकबापूवाणी (Matadata ka Adhikar thaa Bhagwan hue Matdata-DeepakBapuwani) - *---ज़माने पर सवाल पर सवालसभी उठाते, अपने बारे में कोई पूछे झूठे जवाब जुटाते।‘दीपकबापू’ झांक रहे सभी दूसरे के घरों में, गैर के दर्द ...6 years ago
-
भ्रमजाल फैलाकर सिंहासन पा जाते-दीपकबापूवाणी (bhramjal Failakar singhasan paa jaate-DeepakbapuWani - *छोड़ चुके हम सब चाहत,* *मजबूरी से न समझना आहत।* *कहें दीपकबापू खुश होंगे हम* *ढूंढ लो अपने लिये तुम राहत।* *----* *बुझे मन से न बात करो* *कभी दिल से भी हंसा...6 years ago
-
राम का नाम लेते हुए महलों में कदम जमा लिये-दीपक बापू कहिन (ram nam japte mahalon mein kadam jama dtla-DeepakBapukahin) - *जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है* *आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।* *कहें दीपकबापू मन के वीर वह* *जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।* *---* *सड़क पर चलकर नहीं देखते...6 years ago
-
रंक का नाम जापते भी राजा बन जाते-दीपक बापू कहिन (Rank ka naam jaapte bhi raja ban jate-DeepakBapuKahin) - *रंक का नाम जापते भी राजा बन जाते, भलाई के दावे से ही मजे बन आते।* *‘दीपकबापू’ जाने राम करें सबका भला, ठगों के महल भी मुफ्त में तन जाते।।* *-----* *रुपये से...6 years ago
-
पश्चिमी दबाव में धर्म और नाम बदलने वाले धर्मनिरपेक्षता का नाटक करते रहेंगे-हिन्दी लेख (Convrted Hindu Now will Drama As Secularism Presure of West society-Hindi Article on Conversion of Religion) - हम पुराने भक्त हैं। चिंत्तक भी हैं। भक्तों का राजनीतिक तथा कथित सामाजिक संगठन के लोगों से संपर्क रहा है। यह अलग बात है ...7 years ago
-
जयश्रीराम का राजनीतिकरण कौन कर रहा है-हिन्दी संपादकीय - जब देश में रामजन्मभूमि आंदोलन चल रहा था तब ‘जयश्रीराम’ नारे का जिस तरह चुनावी राजनीतिकरण हुआ उसकी अनेक मिसाल...8 years ago
-
अधर्मी व्यक्ति की तरक्की देखकर विचलित न हो-मनुस्मृति के आधार पर चिंत्तन लेख - विश्व के अधिकतर देशों में जो राजनीतक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्थायें हैं उनमें सादगी, सदाचार तथा सिद्धांतों के साथ विकास करते हुए उच...11 years ago
1 comment:
जय बजरंगबली
Post a Comment