समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

Friday, April 18, 2008

संत कबीर वाणी:खुद को पानी नहीं मिले दूसरों को बांटे खीर

पानी मिले न आपको, औरन बकसत छीर
आपन मन निहचल नहीं और बंधावत धीर


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कुछ लोगों को पानी तक नहीं मिलता और दूसरों को खीर प्रदान करने की बात करते हैं और अपनी बुद्धि निश्चयात्मक नहीं है और दूसरों को धीरज प्रदान करते हैं।

पढि पढि के समुझावई, मन नहीं धरि धीर
रोटी का संसै पड़ा, यौं कहें दास कबीर

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कई लोग धर्मग्रंथों को पढ़कर उसे रट लेते हैं और दूसरों को समझाने लगते हैं पर उनका आचरण भी कोई अच्छा नहीं होता। सदैव अपनी रोटी की जुगाड़ में रहते हैं दूसरों को ज्ञान बघारते हैं

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आजकल धर्मोंपदेश करना व्यवसाय हो गया है। ऐसे अनेक संत हैं जो केवल धन कमाने के लिए ही कथा या उपदेश काम काम करते हैं। ऐसी बातें करते हैं जैसे कि बहुत बड़े ज्ञानी हों और अनेक लोग उनको गुरू मानकर उनकी चरण वंदना करने लगते हैं। यह उनका भ्रम होता है। कई धर्मोपदेशक तो स्वयं भी उस ज्ञान को ग्रहण नहीं करते और अपने अपना काम समाप्त कर उसका दाम वसूल करते हैं। कई जगह जाने से पहले ही दाम तय कर लेते हैं।

यहां हमारा आशय किसी की निंदा करना नहीं है। हम तो बस यह कहना चाहते हैं कि वह व्यवसाय करते हैं यह सभी भक्तों को समझ लेना चाहिए। इन पंक्तियों का लेखक स्वयं ही कई कथाओं में समय पास करने या ज्ञान पाने के लिये जाता है पर उसका उद्देश्य केवल धर्मग्रंथें में पढ़े हुए ज्ञान को स्मरण करना मात्र होता है। ऐसे धर्मोपदेशकों को साधु या संत मानकर सेवा करने या दान से कोई लाभ नहीं होता। उनकी चरणवदंना के कभी भक्ति प्राप्त नहीं होता और जो उनको गुरू बनाते हैं वह भी कोई भगवान का आर्शीवाद नहीं पाते। इनके प्रवचन तो सुनना चाहिए पर फिर भगवान का ध्यान लगाना चाहिए न कि इनके आकर्षण में बंधकर भगवान की भक्ति से विमुख होना जरूरी है। ऐसे लोगों पर माया की कृपा तो होती है पर भगवान की कृपा तो गरीब की सहायता करने, प्यासे को पानी पिलाने और परमार्थ के अन्य काम करने से होती है।

2 comments:

Satyendra Prasad Srivastava said...

सटीक व्याख्या। अच्छा काम कर रहे हैं आप

Manas Path said...

कबीर वाणी के लिए बधाई.

विशिष्ट पत्रिकायें