रहिमन निज मन की बिधा, मन ही राखो गोय
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बांटि न लैहैं कोय
कविवर रहीम कहते है अपने मन के दुःख दर्द किसी से मत करो। लोग उसे सुनकर उपहास करेंगे। कोई भी उसे बांटने वाला नहीं मिलेगा।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-जीवन में दुख दर्द तो सभी को होता है पर जो उसे दूसरों को सुनाकर उसे हल्का करने का प्रयास करते हैं उन्हें समाज में उपहास का पात्र बनना पड़ता है। अब तो वैसे भी लोगों की पीड़ाएं इतनी हो गयीं हैं कि कोई किसी की पीड़ा क्या सुनेगा? सब अपनी कह रहे हैं पर कोई किसी की सुनता नहीं है। अमीर हो या गरीब सब अपने तनाव से जूझ रहे हैं। ऐसे में बस सबके पास हंसने का बस एक ही रास्ता है वह यह कि दूसरा अपनी पीड़ा कहे तो दिल को संतोष हो कि कोई अन्य व्यक्ति भी दुखी है। उसकी पीड़ा का मजाक उड़ाओ ‘‘देख हम भी झेल रहे हैं पर भला किसी से कह रहे हैं‘।
कई चालाक लोग अपने दुख को कहते नहीं है पर अपनी पीड़ा को हल्का करने के लिये दूसरों की पीड़ा को सबके सामने सुनाकर उसे निशाना बनाते हैं। ऐसे लोगों को अपनी थोड़ी पीड़ा बताना भी मूर्खता है। वह सार्वजनिक रूप से उसकी चर्चा कर उपहास बनाते है। ऐसे में अपना दर्द कम होने की बजाय बढ़ और जाता है। अपने दुःख दर्द जब हमें खुद ही झेलने हैं तब दूसरों को वह बताकर क्या मिलने वाला है? जब हमारे दर्द को कोई इलाज करने वाला नहीं है उसकी दवा हमें ढूंढनी है तो फिर क्योंकर उसे सार्वजनिक चर्चा का विषय बनाएं। उसका हल हो न हो पर लोग पूछते फिरेंगे-‘‘क्या हुआ उसका?’’
हम अपनी उस पीड़ा को भूल गये हों पर लोग उसे याद कर बढ़ा देते हैं। ऐसे में कुछ अन्य विषय पर सोच रहे हों तो उससे ध्यान हटकर अपनी उसी समस्या की तरफ चला जाता है। बेहतर है अपने दर्द अपने मन में रखें।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Saturday, April 5, 2008
रहीम के दोहे:अपनी पीडा दूसरों को सुनाकर उपहास का पत्र बने
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