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Tuesday, April 8, 2008

संत कबीर वाणी:संसार में रमे तो राम का नाम भूल गए

राम नाम जाना नहीं, पाला सकल कुटुम्ब
धन्धाही में पचि मरा, बार भई नहिं बुम्ब


संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में माया-मोह में रमकर अपने परिवार का भरण-भोषण किया पर राम का नाम नही ले पाये। सारा समय अपने व्यवसाय में बीत गया और न उससे सत्संग मिला न प्रतिष्ठा।

दुनिया के धोखे मुआ, चला कुटुंब की कानि
तब कुल की क्या लाज है, जब ले धरा मसानि


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि यह संसार तो एक तरह से धोखा है। इसमें आदमी जीवन भर अपने कुटुंब के बंधन में जकड़ा रह कर उसकी प्रतिष्ठा का यत्न करता है। यह नहीं सोचता कि तब इस कुटुंब के लोग ही उस श्मशान में पहुंचा देंगे तब कुल की क्या इज्जत होगी।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-हर कोई अपने कुल की वृद्धि चाहता है। समस्या यही नहीं है। कुछ लोग जिन को अपने समाज का मार्गदर्शन करने का दायित्व है वह भी लोगों को अपने समाज की वृद्धि के लिये प्रेरित करते है। हर आदमी अपने परिवार, जाति, भाषा और धर्म के लोगों की वृद्धि चाहता है। उससे लगता है कि उसकी भी इससे प्रतिष्ठा बढ़ती है। यह सब देह में बैठी आत्मा है जिसकी वजह से सब जगह सम्मान है। जब वह इसमें से निकल जायेगी तब अपने ही लोग श्मशान में पहुंचा देते है तब उनको यह परवाह नही रहती है कि यह हमारा आदमी था।
इसलिये अपने भ्रम को भूलकर भगवान का नाम लेना चाहिए ताकि
हमें प्रेरणा और भक्ति मिलती रहे। इस वंश,जात और धर्म की वृद्धि के चक्कर में तो सारा जीवन संताप मेंे गुजर जाता है। अतः भगवान का नाम लेकर ही हम उससे उबर सकते है।

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