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Tuesday, March 11, 2008

संत कबीर वाणी:स्वार्थी कभी भक्त नहीं होते

फल कारन सेवा करै, निशि-दिन जांचै राम
कहैं कबीर सेवक नहीं, चाहे चौगुन दाम


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जो फल की इच्छा रख कर सेवा करता और दिन-रात भगवान का नाम इसलिए लेता है कि देखें हमारा काम बनता है कि नहीं-अर्थात राम जी कि परीक्षा लेता है-ऐसा सेवक और भक्त तो स्वार्थी है जो अपनी करनी का चारगुना फल चाहता है।

व्याख्या- इस दुनिया में बहुत कम लोग हैं जो निष्काम भाव से भक्ति करते हैं। सभी के मन में कुछ न कुछ इच्छा होती है। ऐसे में आध्यात्म के नाम पर ठगों की बन आती है। किसी के साथ कोई घरेलू, व्यावसायिक और स्वास्थ्य संबधी परेशानी हो तो वह इधर-उधर भटकते हैं। कोई किसी की भक्ति बताता है तो कोई किसी की। कोई मन्त्र बताता है को कोई तंत्र। इस देह के साथ जो संकट होते हैं वह सबके साथ आते हैं पर असली भक्त उनसे विचलित नहीं होते और कई लोग अपनी समस्या के हल के लिए अपने इष्ट तक बदलते रहते हैं। जिस गुरु के पास जाते हैं वह अपने इष्ट का स्मरण करने को कहता है। ऐसे स्वार्थवश भक्ति भाव करने वाले लोग जीवन भर कष्ट में रहते हैं।

2 comments:

mamta said...

आज भी कबीर दास जी की बात कितने मायने रखती है।

परमजीत सिहँ बाली said...

एक दम सही।

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