मैं जब भी टीवी और अखबारों में खेलों और फिल्मों के बारे में पढता हूँ तो ऐसा लगता है प्रचार माध्यमों को अब अपने केवल पाठको और दर्शकों के लिए न केवल पठनीय और दर्शनीय सामग्री चाहिऐ बल्कि उसके लिए उनको ऐसे माडल और फोटोजनिक चेहरे चाहिऐ जो उसमें सज सकें। यहीं बाजार के प्रबंधकों की सक्रियता बढ़ गयी लगती है। वह हर क्षेत्र में सक्रिय हैं और फिल्म में अभिनेता और खेल में खिलाडी नहीं बल्कि माडल ढूंढते हैं।
किसी क्रिकेट खिलाडी ने एक दो मैंच में रन बना लिए तो वह उसके प्रचार में जुट जाते हैं। उसके माँ-बाप, भाई-बहिन और दोस्त जो भी मिल जाये उसके बारे में चर्चा कर बचपन के संस्मरण अपने कार्यक्रमों और कालमों में छापते हैं गोया कि बचपन से उसमें बडे आदमी बनने के गुण मौजूद थे। इसी तरह नये फिल्म अभिनेता के-जिनमें अधिकतर के माँ-बाप फिल्मों में काम कर चुके हैं-के बारे में प्रचार माध्यम यह कहने में जरा भी कहने के संकोच नहीं करते कि अभिनय तो उसके खून में है-हालांकि क्या उनके माँ-बाप के भी खून में अभिनय है इस पर प्रकाश नहीं डालते।
कुछ लोग समझ नहीं पाते तो कुछ गुस्सा होते हैं पर उन्हें यह समझना चाहिए कि ऐसा प्रचार माध्यम इसलिए करते हैं ताकि उनके विज्ञापनोंदाताओं के लिए माडल जुटा सकें। पहले उनको जन्मजात नायक और खिलाडी के रूप में लोगों की दृष्टि में स्थापित किया जाता है फिर उसे भुनाया जाता है। ऐसे में जो क्रिकेट में खेल की तकनीकी और फिल्म में जो अभिनय देखना चाहते हैं उन्हें निराशा तो होगी उसके लिए अपने ऊपर कोई तनाव लेने की जरूरत नहीं हैं।
भारतीय फिल्में आस्कर अवार्ड के लिए जातीं है उसका प्रचार इस तरह होता है जैसे कि वह कोई पुरस्कार लाकर लौटेंगी-ऐसा हो नहीं सकता। हिन्दी फिल्मो के पास दर्शक बहुत है पर इसका मतलब यह नहीं है कि स्तर विश्व में कोई बहुत ऊंचा है-राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर जानदार और आकर्षक फिल बनाने का श्रेय इस देश के निर्देशकों और कलाकारों के पास नहीं बल्कि उन अंग्रेजों के पास है जिनके खिलाफ उन्होने आजादी की लड़ाई लड़ी । क्रिकेट में कई महान खिलाड़ी हैं तो केवल इसलिए कि उन्हें देश में देखने वाले बहुत है पर विश्व स्तर पर उनकी कोई अहमियत नहीं है। देश के लोगों भी उनको इसलिए अधिक जानते हैं कि प्रचार माध्यम उन्हें हमेशा उनके सामने किये रहते हैं ताकि लोग उन्हें याद रखें और उनके तेल, शैंपू, गाडियाँ और मोबाइल के विज्ञापनों से प्रभावित होकर अपनी जेब ढीली करे।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Saturday, December 29, 2007
क्रिकेट, फिल्म और बाज़ार प्रबंधन
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