कभी दिन खराब हो सकता है और तो कभी समय! ऐसे में दिमाग मी तनाव आता है पर अगर हम मान लें की जब अच्छा समय नहीं रहा तो बुरा समय भी नहीं रहेगा तो अपने अन्दर आत्मविश्वास उत्पन्न हो जाता है।
हुआ यूं कि एक शाम मैं एटीएम से पैसे निकालता भूल गया। रात को एक बार ख्याल आया कि जाकर पैसे निकाल लाऊँ पर फिर आलस्य आ गया। आज सुबह जब मैं घर से निकला तो मेरे में ढाई सौ रूपये थे। स्कूटर पर मैं अपने काम से इधर-उधर चलता गया। कई जगह एटीएम मिलने के बावजूद यह सोचता रहा कि अभी तो मेरे पास समय है और काम समाप्त करने के बाद निकाल लूंगा। होते-होते शाम हो गई और घर वापस लौटने का समय हो गया और फिर मैं एक एटीएम में गया तो वहाँ भीड़ थी। तब मुझे ध्यान आया कि आज एक तारीख को वेतन आदि के भुगतान का समय होने के कारण भीड़ अधिक रहती है। अब मेरा माथा ठनका। मैं अन्य भी एटीएम पर गया पर पर सब जगह भीड़ थी। आखिर एक एटीएम पर मन मसोस कर रुकना पडा सोचा-'आज पैसे निकालना जरूरी है, अब जितनी बडी लाइन है उसमें लग ही जाता हूँ।
वहाँ एक बार तो एटीएम मशीन लोगों के कार्ड को तो स्वीकार नहीं कर रहा था और दूसरी बार पर करने पर ही काम चल रहा था। लोग पैसे क्या निकाल रहे थे। कहा जाये कि जूझ रहे थे। कुछ लोगों ने अपने नोट गिने तो पांच-पांच सौ से नोट भी पन्नी से जुडे हुए थे। मतलब वह कटे-फटे नोटों की श्रेणी के थे पर एटीएम से निकल रहे थे। अब मेरा माथा ठनका। हालांकि लोग कह रहे थे कि 'बाद में बैंक इसे बदल देगा।'
अब समस्या थी कि उस एटीएम के रास्ते पर मेरा प्रतिदिन का आना-जाना नहीं होता। भला मैं कब वहाँ नोट बदलवाने आता? मैंने निर्णय लिया कि अब तो कल ही पैसे निकाल लूंगा। अपने स्कूटर पर वहाँ भी चल पडा। एक रास्ते पर मैं उलटा चल पडा और इसकी वजह से पडा और थोडा रास्ता तय किया तो सामने से आ रहे ट्रैफिक में फंस गया और आगे ट्रेफिक वैन मैं कि खडे देखा। मुझे लगा कि वहाँ से किसी की मुझ पर नजर पड़ सकती है इसलिए तत्काल एक नमकीन की दुकान की तरफ मुड़ गया ताकि किसी ने देखा हो उसको लगे के मैं वहाँ कुछ खरीदने के रुका हूँ। स्कूटर खडा कर उससे आधा किलो नमकीन खरीद लिया जिसमें मुझे चालीस रूपये खर्च करना पडा। अब मैं वहीं से स्कूटर लेकर निकला सीधे रास्ते चला। थोडा आगे चला तो स्कूटर का साइलेंसर खराब हो गया और वह भयानक आवाज करने लगा। किसी तरह तीन किलोमीटर चलने पर एक मैकनिक मिला। उससे वह स्कूटर ठीक कराया। जब स्कूटर खराब हुआ तो मैं सोच रहा था कि काश मेरे पास अधिक पैसे होते! हालांकि थोडी देर के तनाव आया पर मैं जल्दी अपने पर यह सोचकर नियंत्रण पाया कि" आखिर समय और दिन है। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है-"।
जो बात मेरे मन में आई और उस पर मैं स्वयं भी मुस्काया कि'पैसे का महत्त्व है या नहीं यह अलग चिंतन का विषय है पर इसमें कोई शक नहीं है कि वह आदमी के लिए आत्मविश्वास का बहुत बड़ा स्त्रोत होता है, इसलिए अपनी जेब पर भी नजर रखना चाहिए कि वह उसमें पर्याप्त मात्रा में हो।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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3 comments:
कोशिश तो सभी करते हैं कि पर्याप्त मात्रा में क्या उससे भी ज्यादा हो, मगर लायें कहाँ से. उसी में तो जुझे पड़े हैं सुबह से शाम तक. एटीएम पर भीड़ न भी हो, तो भी निकलेंगे तो तभी जब बैंक में हों :)
कभी कभी तो और भी बुरा समय आता है जब
किसी सफ़र में टेढ़े रास्ते से जाना पड़ता है।
यह भी खूब रही।
हमारे बड़े बुजुर्ग तभी तो कहते थे कि काल करे सो आज कर ...
हा हा
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
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