जो हंसा मोती चुगेँ , कंकर क्यों पतिताय
कंकर माथा ना नवै, मोटी मिले तो खाय
जो ज्ञानी और विवेकवान-हंस रूपी-लोग संसार की आसक्ति को त्यागकर आत्मज्ञान रूपी मोती को चुगता है, तो वह सांसरिक विषय और कामनाओं के कंकर पत्थर पर क्यों यकीन करेगा? अर्थात वह मिथ्या वाद-विवादों एवं कल्पित मान्यताओं के चक्कर में नहीं पडेगा। वह कंकर रूपी अज्ञानता के आगे कदापि अपना माथा नहीं झुकायेगा, केवल यथार्थ ज्ञान को ही ग्रहण करेगा।
1 comment:
सत्य वचन।
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