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Thursday, August 9, 2007

संत कबीर वाणी: स्वार्थी की नम्रता दिखावे की


नमन नवां तो क्या हुआ, सुधा चित्त न ताहिं
पारधिया दूना नवेँ, चीता चोर समान
जिसके हृदय में सरलता और सहजता का भाव उसकी नम्रता और झुकना भी किस काम का? यूँ तो शिकारी भी शिकार करते समय झुक जाता है परन्तु अपने बाणों से मृग को मार देता है। उसी प्रकार स्वार्थ सिद्धि के स्वार्थी व्यक्ति झुक-झुक कर अपना काम निकलता है।

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