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Thursday, August 2, 2007

चाणक्य वाणी: संतोष नन्दन वन और विद्या कामधेनु के समान

NARAD:Hindi Blog Aggregator
  1. क्रोध यमराज के समान है, उसके कारण मनुष्य मृत्यु की गोद में चला जाता है।
  2. तृष्णा वैतरणी नदी की तरह है जिसके कारण मनुष्य को सदैव कष्ट उठाने पड़ते हैं।
  3. विद्या कामधेनु के समान है । मनुष्य अगर भलीभांति शिक्षा प्राप्त करे को वह कहीं भी और कभी भी फल प्रदान कर सकती है।
  4. संतोष नन्दन वन के समान है। मनुष्य अगर अपने अन्दर उसे स्थापित करे तो उसे वैसे ही सुख मिलेगा जैसे नन्दन वन में मिलता है।
  5. रुप की शोभा गुण है। अगर गुण नहीं है तो रूपवान स्त्री और पुरुष भी कुरूप लगने लगता है।
  6. कुल की शोभा शील मैं है। अगर शील नहीं है तो उच्च कुल का व्यक्ति भी नीच और गन्दा लगने लगता है।
  7. विद्या की शोभा उसकी सिद्धि में है । जिस विद्या से कोई उपलब्धि प्राप्त हो वही काम की है।
  8. धन की शोभा उसके उपयोग में है । धन के व्यय में अगर कंजूसी की जाये तो वह किसी मतलब का नहीं रह जाता है, अत: उसे खर्च करते रहना चाहिऐ

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