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दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका
चाणक्य वाणी: संतोष नन्दन वन और विद्या कामधेनु के समान

- क्रोध यमराज के समान है, उसके कारण मनुष्य मृत्यु की गोद में चला जाता है।
- तृष्णा वैतरणी नदी की तरह है जिसके कारण मनुष्य को सदैव कष्ट उठाने पड़ते हैं।
- विद्या कामधेनु के समान है । मनुष्य अगर भलीभांति शिक्षा प्राप्त करे को वह कहीं भी और कभी भी फल प्रदान कर सकती है।
- संतोष नन्दन वन के समान है। मनुष्य अगर अपने अन्दर उसे स्थापित करे तो उसे वैसे ही सुख मिलेगा जैसे नन्दन वन में मिलता है।
- रुप की शोभा गुण है। अगर गुण नहीं है तो रूपवान स्त्री और पुरुष भी कुरूप लगने लगता है।
- कुल की शोभा शील मैं है। अगर शील नहीं है तो उच्च कुल का व्यक्ति भी नीच और गन्दा लगने लगता है।
- विद्या की शोभा उसकी सिद्धि में है । जिस विद्या से कोई उपलब्धि प्राप्त हो वही काम की है।
- धन की शोभा उसके उपयोग में है । धन के व्यय में अगर कंजूसी की जाये तो वह किसी मतलब का नहीं रह जाता है, अत: उसे खर्च करते रहना चाहिऐ
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