चतुराई क्या कीजिये, जो नहिं शब्द समाय
कोटिक गुन सूवा पढै, अंत बिलाई खाय
उस चतुरता से क्या लाभ? जब सतगुरु के ज्ञान-उपदेश के निर्णय और शब्द भी हृदय में नहीं समाते और उस प्रवचन का भी फिर क्या लाभ हुआ। जैसे करोड़ों गुणों की बातें तोता सीखता-पढता है, परंतु अवसर आने पर उसे बिल्ली खा जाती है। इसी प्रकार सदगुरु के शब्द वुनते हुए भी अज्ञानी जन यूँ ही मर जाते हैं।
1 comment:
सारथी जी, कबीर जी ्की रचनाओं को अर्थ सहित यहाँ प्रेषित करने के लिए धन्यवाद।कृप्या चार- पाँच दोहो की व्याख्या यहाँ एक साथ अर्थ सहित दे।
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