शीतल शब्द उचारिये, अहं आनिये नाहिं
तेरा प्रीतम तुझहि में, दुसमन भी मुझ माहिं
अपने मुख से सदा शीतल शब्दों का उच्चारण करो। अहंकार के कठोर वचनों को मत बोलो। अच्छे व्यवहार का भाव जो हमें लोगों में भले व्यक्ति की छबि बनाता है वह मित्र की तरह हमारे अन्दर ही है और दुर्व्यहार का भाव दुष्ट व्यक्ति की छबि बनाता है वह शत्रु भी हमारे अन्दर है
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