
बाना साधू का ओढें, वाणी से बोलें बस साधुवाद
हृदय में साधुत्व नहीं, बुद्धि में भरी है बकवाद
निरंकार की बात करें, अहंकार करने में न डरें
दान की बात करें ,मुफ़्त की रोटी का लेते स्वाद
धर्म के मर्म से परे, विचारो में ढ़ेर सारे पाप भरे
त्याग की बात करें, जोडें अपनी लिए ज़ायदाद
हंस-हंसकर बोलते है, जबकि मन में क्लेश भरा
प्रेम की बात करें, घृणा से करें लोगों को बरबाद
पेट मांगे सुरा, आंखे देखना चाहें सर्वांग सुन्दरी
निष्काम की बात करें, काम में झलके असाधुवाद
ऐसे साधुओं से बचकर रहना, स्वभाव से हैं जो असाधु
त्यागी साधू ही सच्चा, करता हैं समाज को आबाद
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1 comment:
रचना मे दिए विचार अच्छे है।
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