- जो बुद्धिमान पुरुष होते हैं, वह सब अपने पुत्रों की नाना प्रकार के सदचारों की शिक्षा देकर उनको योग्य बनाते हैं, ताकि वह नीतिवान और शक्तिवान बनकर अपने कुल की परंपरा को आगे कायम रखकर समाज में अपना नाम कर सकें।
- जो माता- पिता अपने पुत्रों को शिक्षा नहीं दिलाते, उन्हें पढाते-लिखाते नहीं है वह उस पुत्र के शत्रु हैं क्योंकि फिर वह कहीं किसी सभा में बैठता है तो ऐसे लगता है जैसे कि हंसों में बगुला आकर बैठ गया हो।
- बच्चों की ज्यादा दुलारना अथवा ताडना देना दोनों ही हानिकारक है। इसीलिये पुत्र और शिष्य को उसी सीमा तक दुलाराना और ताड़ना देना चाहिऐ जहाँ तक उचित हो ।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
Thursday, July 5, 2007
चाणक्य वाणी: माता-पिता के संतान के प्रति कर्तव्य
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