१.जिस प्रकार कोई गायिका निर्धन प्रेमी को नहीं पूछती, पराजित राजा को जनता मान नहीं देती, उसी प्रकार से सूखे और टूटे वृक्ष को पक्षी छोड़ जाया करते हैं। अत: अतिथि को चाहिए कि वह भोजन के तुरन्त बाद मेजबान का घर छोड़ दे।
२.यजमान के घर सर पुरोहित दक्षिणा लेकर और विद्या अर्जन के बाद विद्यार्थी गुरू के द्वार से चला जाता है उसी प्रकार से वन के जल जाने पर पहु-पक्षी वन का त्याग कर अन्यत्र पलायन कर जाते हैं।
लेखकीय अभिमत-चाणक्य एक महान विद्धान थे और इन दोनों संदेशों में उनका यही आशय है कि आदमी को और परिस्थियों को ध्यान में रखते हुए अपनी शारीरिक सुरक्षा और मान-सम्मान के लिए सतर्कता बरतना चाहिए।
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