बोलै बोल विचारि के, बैठे ठौर संभारि
कहैं कबीर ता दास को, कबहु न आवै हारि
इसका आशय यह है कि जो आदमी वाणी के महत्त्व को जानता है,, समय देखकर उसके अनुसार सोच और विचार कर बोलता है और अपने लिए उचित स्थान देखकर बैठता है वह कभी भी कहीं भी पराजित नहीं हो सकता।
जंत्र मन्त्र सब झूठ है, मति भरमो जग कोय
सार शब्द जाने बिना, कागा हंस न होय
संत शिरोमणि कबीरदास जीं का यह आशय है कि यन्त्र-मन्त्र एवं टोना-टोटका आदि सब मिथ्या हैं। इनके भ्रम में मत कभे मत आओ। परम सत्य के ठोस शब्द-ज्ञान के बिना, कौवा कभी भी हंस नहीं हो सकता अर्थात दुर्गुनी-अज्ञानी लोग कभे सदगुनी और ज्ञानवान नही हो सकते
2 comments:
बहुत अच्छा.
सही लिखा.
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