रिश्तो की डोर को तोड़ते लोग
करते हैं प्यार की बात
समाज मैं एकता की पहल
जोड़ नहीं पाते घर के दिल
तोड़ नही पाते अपने दायरे
करते है दुनिया में शांति की बात
मन मन में लेकर अशांति
जो पास नहीं है उसे बांटने की बात
केवल शब्द ही तो खर्च करना है
जो धन संचय किया
उसे कोई नहीं बाँटता
छिपाने के लिए
लगाता है पूरी ताक़त
अपनी जिन्दगी लगाता है
घर का खजाना भरने में
नारे लगाते है
गरीबी हटाने के लोग
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कहने के लिए कुछ भी कहना है
कौन याद रखता है कि
हमने कब कहा क्या था
जो कहा उस राह कौन चलना है
ऐसे ही विरोधाभास में जीते लोग
सवाल सब करते है
जवाब से करते परहेज
अपने शब्द बाण से
दुसरे को घायल करते
अपने घायल होने पर
कराहते लोग
कथनी और करनी में
नहीं रखते अंतर तो
क्यों हैरान होते लोग
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6 comments:
बहुत सुंदर रचना. विरोधाभासों को अच्छी तरह गुंथा है शब्दों में.. बधाई
neeraj jee aapka dhnyavaad, aapke sandeshon se mere honslaa badaa hai.
सुन्दर रचना है और अच्छे भावो से ओत-प्रोत है यथा-
सवाल सब करते है
जवाब से करते परहेज
अपने शब्द बाण से
दुसरे को घायल करते
अपने घायल होने पर
कराहते लोग
कथनी और करनी में
नहीं रखते अंतर तो
क्यों हैरान होते लोग
अच्छी रचना है। भाव बहुत सुन्दर है। शब्दों का चयन अच्छा है।
अच्छा लिखा है आपने । भाई, अपना दर्द दर्द और दूसरे को दिया दर्द तो बस या मजाक या यूँ ही दे डालते हैं ।
घुघूती बासूती
वाह, बहुत खूब, लिखते रहें.
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