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Friday, May 18, 2007

विरोधाभास में जीते लोग

NARAD:Hindi Blog Aggregatorअपनों से दूर होते लोग
रिश्तो की डोर को तोड़ते लोग
करते हैं प्यार की बात
समाज मैं एकता की पहल
जोड़ नहीं पाते घर के दिल
तोड़ नही पाते अपने दायरे
करते है दुनिया में शांति की बात
मन मन में लेकर अशांति
जो पास नहीं है उसे बांटने की बात
केवल शब्द ही तो खर्च करना है
जो धन संचय किया
उसे कोई नहीं बाँटता
छिपाने के लिए
लगाता है पूरी ताक़त
अपनी जिन्दगी लगाता है
घर का खजाना भरने में
नारे लगाते है
गरीबी हटाने के लोग
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कहने के लिए कुछ भी कहना है
कौन याद रखता है कि
हमने कब कहा क्या था
जो कहा उस राह कौन चलना है
ऐसे ही विरोधाभास में जीते लोग
सवाल सब करते है
जवाब से करते परहेज
अपने शब्द बाण से
दुसरे को घायल करते
अपने घायल होने पर
कराहते लोग
कथनी और करनी में
नहीं रखते अंतर तो
क्यों हैरान होते लोग
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6 comments:

Anonymous said...

बहुत सुंदर रचना. विरोधाभासों को अच्छी तरह गुंथा है शब्दों में.. बधाई

दीपक भारतदीप said...

neeraj jee aapka dhnyavaad, aapke sandeshon se mere honslaa badaa hai.

परमजीत सिहँ बाली said...

सुन्दर रचना है और अच्छे भावो से ओत-प्रोत है यथा-
सवाल सब करते है
जवाब से करते परहेज
अपने शब्द बाण से
दुसरे को घायल करते
अपने घायल होने पर
कराहते लोग
कथनी और करनी में
नहीं रखते अंतर तो
क्यों हैरान होते लोग

Jitendra Chaudhary said...

अच्छी रचना है। भाव बहुत सुन्दर है। शब्दों का चयन अच्छा है।

ghughutibasuti said...

अच्छा लिखा है आपने । भाई, अपना दर्द दर्द और दूसरे को दिया दर्द तो बस या मजाक या यूँ ही दे डालते हैं ।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

वाह, बहुत खूब, लिखते रहें.

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