मैं कोई मोबाइल फोन नहीं खरीदना नहीं चाहता था। एक पुराना फोन होने के बावजूद लोगों ने फोन करना ही बंद कर दिया। कहते थे कि लैंड लायन फोन पर मोबाइल से बात करना महंगा पडता है। घर पर भी दबाव बढने लगा तो हमने सोचा कि इस तरह तो सारे मित्रों और रिश्तेदारों से कट जायेंगे । और दुनियां भर के खर्च तो हो ही रहे हैं क्यों न एक सिरदर्द और बड़ा लें ताकि अपने लोगों यह कहने का अवसर न मिले यार हमने तुम्हें घर पर फोन किया था तुम थे नहीं। शादी पर बुलाना भूल गये और बहाना यह कि तुम्हें फोन किया था पर लग नहीं रहा था। मकान के मुहूर्त पर नहीं बुलाया बहना वही तुम्हें फोन पर बुलाया था।
एक दिन ताव आ गया और हमने मोबाइल फोन खरीद लिया । हमे फोन की ज्यादा ख़ुशी नहीं थी क्योंकि एक तरह से वह हम पर थोपा गया था। जिन लोगों ने फोन रखने को प्रेरित किया था वह नाटकीय ढंग से प्रसन्नता व्यक्त करने लगे । कहने लगे कि -'यार मिठाई खिलाओ।
हमने कहा-'' भयी जब तुमने खरीदा था तब तो तुमने कोइ मिठाई नहीं खिलायी । आज हमसे क्यों माँग रहे हो?
कहने लगे हमने -"हमने तो महंगा खरीदा था तुमने सस्ता खरीदा है, हम तो लुट गये थे। मिठाई कहॉ से खिलते .''
बहरहाल ऐसा कहने वाले कहते रहे और हमने किसी को मिठाई नहीं खिलायी ।
इसमें खुश होने जैसी कोइ बात नही थी । बहुत जल्द हमें फोन एक बोझ लगने लगा । समस्या यह नहीं है कि उसे रखने से कोइ हमें तंग कर रहा है। हमें परशानी तो उन कालों से है जो हमें करोड़पति बनाने का प्रस्ताव देते हैं। पिश्ले दो महीने में हमें उन लोगों ने कोइ फोन नहीं किया जो इसके लिए हमने उकसाते रहे , हाँ हमें ऐसे कालों से परेशान है जो हमें तमाम तरह के प्रलोभन दे रहे हैं। हमने मोबाइल फोन लिया ही था कि क्रिकेट .का मौसम शुरू हो चुका था तो ऐसे काल आनी लगे थे कि जवाब दो इनाम्म जीतो या लाइव स्कोर जानने के लिए लोड करें । हमने देख लिया था कि ओप्शन बटन दबाने का मतलब है नब्बे रुपये से टोक टाइम् कम करना । यह तो भला हो टीम इंडिया का जो उसने जल्दी बाहर आकर इस संकट से बचा लिया।
इधर कंप्यूटर में भी स्पैम में कई ऐसे संदेश रखे हैं। इस हिसाब से तो मुझे एक माह में ही करोड़पति बन जाना चाहिये । पर जनाब मैं करोड़पति बनना ही नहीं चाहता। लोग पता क्यों नहीं बिना सोचे समझे मुझे करोड़पति बनाना । यह दौर चल रहा है उससे तो ऐसा लग रहा है कि हमारे देश में देश में करोड़पति का जमघट लगाने वाला है। हालांकि देश का विकास चाहने वालों को यह अच्छा लगे, पर मैं जनता हूँ कि जो कम्पनियाँ अपने यहां कार्यरत युवकों को मामूली वेतन देने से कतराती हैं वह मुझे क्या करोड़पति बनाएँगी। वैसे भी मुझे करोड़पति बनना होता तो यह लेखन के रस्ते पर क्यों चलता॥
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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1 comment:
maine yh is blog par pahle vyangya rachanaa likhee hai
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