कहा जाता है बोए पेड बबूल के तो आम कहॉ से होय। यह कहावत अपने आप में बहुत बड़ा दर्शन है इसमें कोई संदेह नहीं है , पर केवल इसी बात को लेकर बबूल से नफ़रत करना मुझे कभी नहीं अच्छा नहीं लगता। वजह! बबूल के सहारे ही उन पेड-पोधों की रक्षा की जाती है जिनके आवारा पशुओं द्वारा खाए जाने का खतरा रहता है। जहाँ भी कोइ पेड लगाया जाता है तो उसके चारों और बबूल की झाडियाँ रख जाती हैं है ताकी कोई पशु न खा सके।
मुझे याद है जब हमने कालोनी में मकान बनाया था तब एक संस्स्था द्वारा पूरी कालोनी में तमाम तरह के पेड-पोधे लगाए गए। हमारे घर के बाहर दो पोधे लगाए गए । हमने उनको दोतीन पानी दिया । एक दिन देखा कि गाय ने एक पौधा खा लिया है। तब वहां से एक मजदूर निकल रहा था। उसे हम जानते तक नहीं थे। उसने उस गाय को वहां से हटाया और हमें आवाज़ दीं। हम पति-पत्नी बाहर निकल आये। उसने गाय द्वारा एक पौधा खाने की जानकारी दीं और सुझाव दिया कि ' इस पौधे की रक्षा के लिए उसके चारों तरफ बबूल की डालियाँ लगा दें। हमारी श्रीमतीजी ने उससे कहीं से बबूल की डालियाँ लाने को कहा तो वह हंसकर बोला-"यहां बबूल की क्या कमी?"
ऐसा कहकर वह वहन से चला गया और थोडी दूर जाकर बबूल की डालियाँ ले आया और उसने उसके चारों और इस तरह लगा दीं कोइ पशु उसे न खा सके। उसके बाद हमने देखा वय पौधा फल-फूलकर एक वृक्ष के रुप में आज भी हमें शुद्ध प्राणवायु प्रदान करता है। एक गुरूजी की सलाह पर हमने अपनी ज़िन्दगी से तनाव और संभावित बिमारियों से बचने के लिए पांच वर्ष पूर्व हमने योग्साधना शुरू की। हमने देखा जब कभी हमें सुबह उठने में देरी हो जाती है तब जब हम उस पेड के नीचे बैठाकर योगासन और प्राणायाम करते है तो यह साफ समझने में आता है कि इस पेड की वजह से ही हमें शुद्ध वायू मिल रही है। फिर याद करता हूँ उस बबूल की डालियों और उसे लाने वाले उस मजदूर को जिसे न हमने पहले देखा और न उससे बाद। दोनों पेड भगवान् की तरह थे- जिन्होंने उसे जीवन दिया। फिर में सोचता होंन कि बबूल के पेड को उससे जिस दुर्गुण की वजह से सम्मान नहीं दिया जाता वही उसका गुन भी तो है वरना वह पेड की रक्षा कैसे करत। फिर मैं उस मजदूर के बारे में सोचता हूँ। लोग गरीबों को हे द्रष्टि से देखते हीं, पर अगर वह मजदूर गरीब न होता तो पैदल नहीं निकलता और हमारे पोधे की रक्षा का वह प्रयास नही करता। यकीनन कोइ स्कूटर, मोटर सायकल या कर में चलने वाला इस पच्दे में नहीं पडता।
वैसे भी मैं कभी बबूल से नफरत नहीं करता। में जनता हूँ कि चुभाना उसका गुन है। इसी तरह यहां किसी में गुन या अवगुण नहीं होता। देखने का हमारा नज़रिया होता है। हमें उस पर विचार करना चाहिऐ। दोष हमें अपने विचार में नहीं रखना चाहिऐ । हमारी द्रष्टि में दोष होता है जो हमें किसी में दोष दिखाता है। जब हम अपने विचारों को साफ करेंगे तब हमें किसी में दोष दिखाई नहीं देगा। इसीलिये मैं कभी बबूल से भी नही चिढ़ता। जब कही उसकी डाली मेरे सामने आ जाती है तो उसे सहलाता हूँ उससे बीच काँटों में उंगली रखकर - मैं यह नही भूल सकता कि उसने मेरे घर के बाहर लगे पेड की रक्षा की थी।
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लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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2 comments:
maine yh rachana aise logon ke liye likhee hai jo doosron par anavshyak dabav dalte hain
बढ़िया लिखा है.. स्वागत है..
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