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Sunday, July 3, 2016

वैश्विक धार्मिक आतंकवाद के विरुद्ध वैचारिक बहस की आवश्यकता-हिन्दी चिंत्तन लेख (vishwa mein Dharmik aatankwad ke viruddh vaicharik bahas ki jaroorat-Hindi Thought Article

                     हमारे यहां के विद्वान तीन विचारधाराओं के हैं-प्रगतिशील, जनवादी तथा राष्ट्रवादी-जिनकी यह धारणा रही है कि धार्मिक आतंकवाद अशिक्षा, गरीबी तथा बेबसी के कारण युवाओं को अपने जाल में फंसाता है।
ढाका में हमला करने वाले
1. सभ्रांत तथा अमीर घरानों की संताने हैं।
2. सभी उत्कृष्ट शैक्षणिक संस्थानों से उच्च शिक्षा प्राप्त हैं।
3.आधुनिक संचार साधनों के उपयोग में इतना माहिर कि
होटल पर कब्जा करने के बाद सीधे दृश्य अपने चैनल पर भेजे।
हैदराबाद में भी हाल ही में गिरफ्तार युवाओं की स्थिति भी कुछ ऐसी है।
ऐसे में तीनों विचाराधाराओं के विद्वान क्या अपनी यह धारणा बदलेंगे कि आतंकवाद का कारण लोगों की निजी स्थिति नहीं वरन् संकट कहीं न कहीं विश्व के धार्मिक समाजों के अंदर ही वैचारिक संकट का है।
इधर हमारे भारतीय समाज में भी संकट कम नहीं है क्योंकि


1.तीव्र गति से शराब पीकर गाड़ी चलाने वाले धनिक वर्ग के युवा
मार्ग पर चलते सामान्य लोगों को पत्थर या कीड़ा समझते हुए कुचल जाते हैं।
1.मित्र के नाम निम्म वर्ग के युवाओं को गुलाम समझकर चलते है।
3.अपने संरक्षकों के पद, प्रतिष्ठा तथा पैसे की वजह से
कानून को खरीदने का विषय समझते हैं।
4.युवतियों को टाईमपास मानकर उनके साथ संबंध बनाते हैं।
एक अध्यात्मिक साधक के रूप में हमारा मानना है कि
1.शिक्षा में भारत के प्राचीन अध्यात्मिक साहित्य को शामिल करना चाहिये।
2.हिन्दू समाज को समझायें कि वह मुगालते में रहकर
जाति, भाषा, क्षेत्र तथा सामाजिक आधार पर भेदभाव से परे रहे।
3.दहेज, खर्चीली विवाह पंरपरा तथा तेरहवीं की प्रथा से कम से कम दस वर्ष दूर रहे।
4.हिन्दू धर्म के रक्षक बजाय दूसरे समाजों को साथ लेने के
प्रयास करने की बजाय अपने समाज के लोगों को
दैहिक, मानसिक तथा वैचारिक रूप से शक्तिशाली बनाने का काम करें।
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                     ढाका में हमलावार अमीर घरानों के होने के साथ ही शिक्षित भी थे-जनवादी ध्यान दें गरीब व अशिक्षितों से बागी होने का हक भी छीन लिया गया है। अभी तक जनवादी तर्क देते थे कि गरीब लोग बागी होकर बंदूक उठाते हैं। ढाका के हमलावर अमीर घरानों के आतंकियों ने उनका तर्क खारिज किया है। ढाका के आतंकी अमीरों की औलाद व शिक्षित थे-धार्मिक आंतक को गरीब व अशिक्षित से जोड़ने वालों को अब अपने तर्क पर दोबारा सोचना चाहिये। भारत के विद्वानों को ढाका के आतंकियों की शिक्षा व अर्थ की स्थिति देखते हुए अपनी यह राय बदली होगी कि विकास व शिक्षा से धार्मिक आतंक कम होगा।
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                        बंग्लादेश के रेस्टॉरेंट में हुई घटना प्रचारतंत्र के उस लोभ का परिणाम है जिसमें वह सनसनी के प्रचार में विज्ञापन प्रसारण से हिंसा के लाभ देखता है। लगता है कि आतंकी संगठन वसूली के लिये प्रचारतंत्र में नाम चमकाने के लिये हिंसा कराते हैं और कथित बुद्धिमान इस जाल में फंस जाते हैं। जैसे ही कहीं आतंकी हिंसा होती है विश्व भर के प्रचार माध्यम उसका सीधा प्रसारण करने के बाद भी लंबी चौड़ी बहस करते हैं जिससे हिंसक तत्व खुश होते हैं। देखा जाये तो जैसे जैसे प्रचारतंत्र की ताकत बड़ी है आतंकवाद भी उसी गति से बढ़ा है क्योंकि कहीं न कहीं वह इसी से खाद पानी पाता है। प्रचारतंत्र में सक्रिय लोग यदि सतर्कता पूर्वक समाचार व बहस के विषयों का चयन इस तरह करें कि आतंकवादी हतोत्साहित हों तो अच्छा रहेगा।
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