कल अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है। प्रचार माध्यमों के लिये यह दिन उसी तरह ही आय का साधन बन गया है जैसे कि वेलंटाईन डे, मातृपितृदिवस तथा मित्र दिवस आदि। अगर हम इन प्रचार माध्यमों के विशेषज्ञ उद्घोषकों के प्रश्नों पर विचार करें तो अजीब लगता है। एक उद्घोषक ने एक अतिथि क्रिकेट खिलाड़ी से पूछा-‘क्या जिम से योगा को चुनौती मिल रही है।’
खिलाड़ी ने जवाब दिया वह तो हमारी समझ में नहीं आया पर दूसरी अतिथि रुपहले पर्दे की अभिनेत्री ने जवाब दिया कि यह दोनों अलग विषय है।
योगसाधना के आठ भाग हैं-यम, नियम, संयम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा तथा समाधि। हम आजकल प्रचार में जिसे योग बता रहे हैं उसको आसन व प्राणायाम तक सीमित किया गया है। शायद इसका कारण इन दोनों में ही साधक दैहिक रूप से अधिक सक्रिय रहता है जिसका फिल्मांकन ज्यादा आकर्षक लगता है। जबकि यम, नियम, प्रत्याहार, ध्यान, धारण व समाधि आंतरिक सक्रियता से संभव होती हैं जिसमें साधक की सक्रियता नहीं होती। इस कारण दर्शकों ऐसी क्रियायें नहीं बांध सकती जिससे टीवी चैनल इससे बचते हैं।
योग साधना के आष्टांग भागों का अभ्यास करने वाला साधक अध्यात्मिक रूप इतना पारंगत हो जाता है कि उसकी बुद्धि कंप्यूटर की तरह स्वतः काम करती है तो मन पालतू होकर उसका दास बन जाता है। वह मन जो मनुष्य का स्वामी होकर इधर से उधर दौड़ाता है वह योग संपन्न बुद्धि का दास बन जाता है। अध्यात्मिक रूप से संपन्न साधक सासंरिक विषयों में दूसरों से अधिक दक्ष होता है। अतः योग साधना का अभ्यास नियमित करें तब इसके महत्व का आभास होगा वरना तो अनेक लोग बिना अभ्यास के इसके महत्व पर चर्चा कर रहे हैं।
-------------खिलाड़ी ने जवाब दिया वह तो हमारी समझ में नहीं आया पर दूसरी अतिथि रुपहले पर्दे की अभिनेत्री ने जवाब दिया कि यह दोनों अलग विषय है।
योगसाधना के आठ भाग हैं-यम, नियम, संयम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायाम, ध्यान, धारणा तथा समाधि। हम आजकल प्रचार में जिसे योग बता रहे हैं उसको आसन व प्राणायाम तक सीमित किया गया है। शायद इसका कारण इन दोनों में ही साधक दैहिक रूप से अधिक सक्रिय रहता है जिसका फिल्मांकन ज्यादा आकर्षक लगता है। जबकि यम, नियम, प्रत्याहार, ध्यान, धारण व समाधि आंतरिक सक्रियता से संभव होती हैं जिसमें साधक की सक्रियता नहीं होती। इस कारण दर्शकों ऐसी क्रियायें नहीं बांध सकती जिससे टीवी चैनल इससे बचते हैं।
योग साधना के आष्टांग भागों का अभ्यास करने वाला साधक अध्यात्मिक रूप इतना पारंगत हो जाता है कि उसकी बुद्धि कंप्यूटर की तरह स्वतः काम करती है तो मन पालतू होकर उसका दास बन जाता है। वह मन जो मनुष्य का स्वामी होकर इधर से उधर दौड़ाता है वह योग संपन्न बुद्धि का दास बन जाता है। अध्यात्मिक रूप से संपन्न साधक सासंरिक विषयों में दूसरों से अधिक दक्ष होता है। अतः योग साधना का अभ्यास नियमित करें तब इसके महत्व का आभास होगा वरना तो अनेक लोग बिना अभ्यास के इसके महत्व पर चर्चा कर रहे हैं।
प्रस्तोता-दीपक ‘भारतदीप’
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