सबकी भलाई का दावा शोरकर जतायें, उगाहें धन पर समाजसेवक कहलायें।
‘दीपकबापू’ तिकड़म से करें अपना काम, बेबस का दिल हमेशा वादे से बहलायें।।
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इंसानी नीयत का पता नहीं चलता, अक्लमंद शब्द के अर्थ से छलता।
‘दीपकबापू’ भावनाओं के व्यापार में, हर रस सौदे की शक्ल में ढलता।।
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तूफान की तरह सांस ले रहे सभी शहर, हर कदम मिलता हादसे का कहर।
समुद्र मंथन में अमृत पी गये देवता, ‘दीपकबापू’ बनाते नकल में सब जहर।।
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कोई रोये तो तरस आता नहीं, कोई हंसे तो पसंद आता नहीं।
‘दीपकबापू’ हैरान है उन लोगों पर, कोई रस जिनको भाता नहीं।।
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जंगल खा गया इंसान शेर हुए लापता, चालाक लोग करें लोमड़ी जैसी खता।
संसार में छा गया कागज का राज, ‘दीपकबापू’ पत्थरों में ढूंढते अपना पता।।
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लालची का नहीं होता ज्ञान से वास्ता, माया महल ही जाता उसका रास्ता।
‘दीपकबापू’ धर्म दाव पर लगा देते, काम क्रोध लोभ से जो होते बावस्ता।।
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धर्म की रक्षा अर्थ से बताते हैं, ज्ञान से शक्तिशाली धन बताते हैं।
‘दीपकबापू’ पाखंड का जाल बुनकर, भक्तों के भय से कमाते हैं।।
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दिमाग में राजकाज की समझ नहीं है, जहां भीड़ का अंगूठा सहमति वहीं है।
‘दीपकबापू’ दाल रोटी के फेर में फंसे, जहां चूल्हे पर पके घर भी वहीं है।।
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चिड़िया तिनका तिनका चुन बनाती घर, इंसान छत के लिये रहता दर-ब-दर।
‘दीपकबापू’ किश्तों में चलाते जिंदगी, उम्र जंग में गुजरे मिले न चैन की डगर।।
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उत्सव में अब खुशी कहां मिलती है, चम्मच समेटे चावल थाली हिलती है।
‘दीपकबापू’ दिल हो गये पत्थर जैसे, जीभ केवल खाने पर ही पिलती है।।
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पत्थर के बुत पर भले यकीन करना, व्यर्थ है मांस के पुतले याचना करना।
संगीनों के पहरे में अमीर बने राजा, ‘दीपकबापू’ न जाने भभकी से डरना।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
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5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
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