पतंजलि योग सूत्र में कहा गया है कि
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योगाङ्गनुष्ठादशुद्धक्षये ज्ञानदीप्तिराविवेकख्यातेः।।
हिन्दी मे भावार्थ-योग से अंगों का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का क्षरण होता है जिससे ज्ञान का प्रकाश होने से विवेक की प्राप्ति होती है।
योग साधना के अभ्यास से मनुष्य देह, मन तथा विचार से अत्यंत मजबूत होता है। उसकी बुद्धि हमेशा ही स्वाभाविक रूप से सतर्क तथा चेतनामय रहती है जिसे किसी अप्रत्याक्षित संकट से वह विचलित नहीं होता। इसलिये बिना मांगे मध्यम वर्ग के लोगों को हमारी सलाह है कि अपनी आत्मरक्षा के लिये वह योगसाधना का सहारा लें। योगसाधना से ही ऐसी सिद्धि मिल सकती है कि न पास हथियार हो न दल फिर भी संकट से आत्म रक्षा की जाये। अब समय आ गया है जब छुईमुई होकर उपभोग में रत रहने से काम नहीं चलेगा। अतः योगसाधना अपनायें। अब अपने देश में अंग्रेजनीति से नहीं वरन् कृष्णनीति से ही काम चलेगा जिसमें योगसिद्धि होना आवश्यक है।
हमने अपने प्राचीन इतिहास में अनेक सिद्धों के नाम सुने हैं। इन सिद्धों ने योग साधना के आठों अंगों में महारत हासिल किया था। उनके जीवन प्रसंगों से हमें प्रेरणा लेना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
इस लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकायें जरूर देखें
1.दीपक भारतदीप की हिन्दी पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
4.दीपक भारतदीप की शब्दयोग पत्रिका
5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
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