श्रीमद्भागवत गीता में प्राणायाम को हवन तथा यज्ञ माना गया है। अपानवायु से प्राणवायु तथा प्राणवायु से अपनावायु में का संचार आहुति कहा गया है। यदि किस मनुष्य को प्रतिदिन श्रम करना पड़ता है तो भी उसे आसन पर स्थिर होकर प्राणायाम अवश्य करना चाहिये। इससे मन की शुद्धि होती है जो कि सार्थक जीवन के लिये आवश्यक है।
पतंजलि योग दर्शन में कहा गया है कि---------‘उदानजयाज्वलपङ्कण्टकादिष्वसङ्गउत्क्रान्तिश्च।’हिन्दी में भावार्थ-‘उदानवायु को जीत लेने से जल, कीचड़ व कण्टकादि का शरीर से संपर्क नहीं रहता जिससे उसकी ऊर्ध्वगति भी होती है।’
व्याख्या-देह में वायु तत्व के पांच रूप है।
1. प्राणवायु जो नासिका से प्रविष्ट होता है।
2. अपानवायु जो नाभि से पांव तक विचरण करता है
3. समानवायु जो हृदय से नाभि तक रहता है।
4. व्यानवायु शरीर की समस्त नाड़ियों में विचरण करता है।
5. उदानवायु जो कंठ में रहता है। अंत समय में सूक्ष्म तत्व का इसी के सहारे बाहर गमन होता है।
योगसाधना के नियमित अभ्यास से वायुतत्व के समस्त तत्वों पर नियंत्रण हो जाता है। वायुतत्व पर नियंत्रण से मन का भटकाव समाप्त होता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
यह कविता/आलेख रचना इस ब्लाग ‘हिन्द केसरी पत्रिका’ प्रकाशित है। इसके अन्य कहीं प्रकाशन की अनुमति लेना आवश्यक है।
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2.दीपक भारतदीप की अनंत शब्दयोग पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
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5.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान का पत्रिका
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