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Tuesday, July 21, 2015

परिहास में भी किसी का अपमान न करें-कौटिल्य के अर्थशास्त्र के आधार पर चिंत्तन लेख(parihas mein bhee kisi ka apaman na karen-A hindi hindi religion thought based on economics of kautilya)

                               अक्सर यह देखा जाता है कि लोग एक दूसरे की मजाक बनाते हैं पर यह नहीं सोचते कि उसका प्रभाव क्या होगा? मनुष्य में विनोद करने का भाव रहता है पर हास्य रंग बिखेरना भी एक कला है।  अधिकतर लोग दूसरों को अपमानित करना ही मजाक समझते हैं।  किसी से कटु वाक्य कहकर फिर स्वयं ही हंसने लगते हैं। अनेक लोग तो अभद्र शब्द हास्य के रूप में प्रयोग कर इस तरह सीना फुलाते हैं जैसे कि कोई बहुत बड़े भाषाविद हों।  इसी वजह से अनेक लोग अपने मित्रों तथा सहयोगियों में अलोकप्रिय हो जाते हैं।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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न नर्म्मसचिवैः सार्द्ध किञ्विदप्रियं बदेत्।
ते हि मर्मण्यभिन्धन्तिप्रह्यसेनापि संसद्धि।।

                              हिन्दी में भावार्थ-परिहास में अपने अपने सहयोगियों को बुरी बात नहीं कहना चाहिये। समूह में बैठकर मजाक में भी किसी के मर्म पर प्रहार नहीं करना चाहिये।
                              हास्य व्यंग्य इस तरह होना चाहिये कि जिस पर किया जाये उसे भी हंसी आ जाये।  सामूहिक वार्तालाप में कभी भी अपने मित्र या सहयोगी का मजाक के नाम पर अपमान करने वाले अलोकप्रिय हो जाते हैं।  इतना ही नहीं वह अपने लिये शत्रु अधिक बनाते हैं। इसलिये किसी से मजाक करने से पहले अपने शब्दों तथा वाक्यों पर विचार अवश्य करना चाहिये। हमने यह भी देखा है कि अनेक लोग एक दूसरे की जाति, भाषा तथा सामाजिक परंपराओं की  भी मजा उड़ाते हैं जिससे आपसी वैमनस्य बढ़ता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’’
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक 'भारतदीप",ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak 'BharatDeep',Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com
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